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जब डॉक्टर भी साथ छोड़ देते है, तब प्रभु और संबंध काम कर देते है

बात बहुत पुरानी है परंतु दिल को हिला देती है। सन् 1976 मे प्रो. एम. जी. शाह के एक माह के बेटे को बिमारी हो गई। उसने दुध पीना बंध कर दिया। वह पानी भी माण्ड- माण्ड कर पिता था। उसे डाॅक्टर के पास ले जाने मे आया। डाॅक्टर ने सारी जाँच करी और फिर विश्लेषण किया की आपके लडके को निमोनिया हो गया है।

उस समय विज्ञान ने इतनी शोध नही करी थी। अभी तो बस उसने प्रगति के पगले चढना प्रारंभ ही करा था। निमोनिया के लिए उस समय एक- दो ही दवा उपलब्ध थी। जिसको लम्बे समय तक लेने से बैक्टीरिया उसके आदि हो जाते थे। और दवा काम करना बंद कर देती है। उस बच्चे को भी हास्पिटल मे लाये दस दिन हो गए थे परंतु उसकी तबीयत सुधरने का नाम ही नही ले रही थी। अब इस परिस्थिति मे क्या करना? डॉक्टर भी चिंतित हो गए। उन्होंने सारे प्रयोग कर लिया पर हालत दिन- प्रतिदिन खराब होती गई।

एक दिन बडी ही हिम्मत के साथ डाॅक्टर ने प्रोफेसर से कहाँ- मुझे माफ कर दिजिये, अब बाजी भगवान के हाथ मे है। यह बालक अब ज्यादा से ज्यादा 10 दिन जी सकता है और कम से कम शायद आज की रात। प्रोफेसर ने फिर पुछा- अब कोई उपाय मेरे बेटे को बचाने का है क्या? डॉक्टर ने कहाँ- विज्ञान के सारे उपाय कर दिये है अब एक ही उपाय है और वह है विधाता का।

तो प्रो. एम. जी. शाह ने पुछा- मै बेटे को घर ले जा सकता हूँ? डॉक्टर भी बचना चाहते थे, उन्होंने कहाँ- जी, बिलकुल ले जा सकते है। प्रोफेसर ने धन्यवाद कहाँ और चल दिये।

अभी उसी क्षण प्रो. एम. जी. शाह बेटे को घर ले आये और आयुर्वेद की चरक सहिता पढने लगे। और रोग के लक्षण बेटे से मिलाने लगे। जब उन्हे लगा की इस बिमारी के सारे लक्षण मिल गये है, उन्हे विश्वास हो गया। उसके बाद उन्होंने बेटे का इलाज शुरू किया। प्रभु पर अटूट श्रद्धा और पिता के प्रेम से बेटा तीन दिनो मे दुध पिने लगा। और जहाँ डाॅक्टर ने उसके लिए दस दिन बताये थे वहा प्रोफेसर का बेटा दस दिनो मे एकदम स्वास्थ्य हो गया।

” आधुनिक विज्ञान हार गया और आयुर्वेद ने जीवन दे दिया”

अब वहा प्रोफेसर साहब ने निर्धारित करा की मुझे आयुर्वेद की डिग्री ले कर आगे बढ़ना है। परंतु उन्हे आयुर्वेद के विद्यालय मे दाखिला नही मिला क्योंकि उन्होंने उच्च विद्यालय मे संस्कृत नही लिया था।

31 साल की उम्र मे उन्होने उच्च विद्यालय मे बाह्य परीक्षा देकर संस्कृत पास किया। फिर 17-18 साल की उम्र के बच्चो के साथ 32 वर्ष के प्रोफेसर ने आयुर्वेद का अभ्यास शुरू किया और डिग्री पाई।

“आज वह प्रोफेसर कम और वेद्यराज ज्यादा है”

मेरा भारत देश
June 20, 2016
यहाँ डिग्री से ज्यादा संस्कारो का सम्मान है क्योंकि मेरे देश का नाम हिन्दूस्तान है
June 20, 2016

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