गर्म फूल का रोटी जैसे आहार का स्थान पाव ने ले लिया है ,
क्या यह नए ज़माने की प्रगति है??
पाव कैसे अभक्ष्य है?
पाव मेदे से बनता है ।
मैदा गेंहू में से बनता है ।
फ्लोरमील में स्टोरेज किये हुए 2- 4 महीने पुरानी गेंहू की गोनी खोलने से पता चलेगा कि उसमें अनगिनत धान्यकीट होते हैं।
ऐसे गेंहू को गरम पानी में भिगोने या चक्की में पिसने से धान्यकीट मर जाते हैं ।
यह पहली हिंसा
भिगे गेंहू को सुखाकर , पीसकर , मैदा गोनिओं में पैक होता है ।
कई दिनों तक पड़े रहने से मैदा खाने लायक नहीं रहता ।
अनेक जीव उत्पन्न होते हैं ।
ऐसा मैदा बेकरी वाले लेते हैं ।
उसमें खट्टा पदार्थ मिलाने पर अनेक जीव मर जाते हैं।
यह दूसरी हिंसा
आटा डालने से उसमें फफूंद भी होती है और त्रस जीव उत्त्पन्न होते हैं ।
उसको ओवन में पकाने से वह सब मर जाते हैं ।
यह तीसरी हिंसा
थोडा गिला ही पाव ओवन से बाहर निकाल लेते हैं ।
रात रहने से वह बासी होता है ,
जिसमें फिरसे त्रस जीवों की उत्त्पत्ति होती है , ऐसे पाव खाने से
ये चोथी हिंसा
ऐसे जीवजंतु वाले पाव खाने से बीमारी का भोग बनते हैं और ऐलोपैथिक दवाइयाँ से पेट में रहे जन्तुओ को मारना पड़ता है
यह पांचवी हिंसा
ऐसी हिंसा की परम्परा से बचना हो तो ब्रेड पाव का आजीवन त्याग करें ।
आज तक हमने बहुत कर्म बंधन कर लिए
आज से हम ब्रेड पाव आदि का त्याग करके अनंत जीवों को अभयदान दे सकते हैं ।
जब जागो तब सवेरा…