एक राजा ने खुद के जन्मदिवस के दिन उस पार्टी के अंदर नगर के विद्वान पंडितो को आमंत्रण दिया। जन्म दिवस के लिए आयोजित समारोह में राजा ने उपस्तिथ सभी विद्वानो को संबोधन करते हुए कहाँ- “आप सभी मेरे नगर की सच्ची शोभा है। मै मेरे जन्म दिन पर आपको कुछ भेठ देना चाहता हूँ। मैं आप सभी को 24 घण्टे का समय देता हूँ। आप इन 24 घण्टो में दीवार बनाकर जितनी जमीन घेरते है वह सारी जमीन राज्य की ओर से आपको भेट देने में आएगी।।”
राजा की बात को सुनकर सारे पंडित आंनद में आ गए। सभा पूरी होने के साथ ही सारे के सारे पंडित अपने घर गए और ज्यादा से ज्यादा जमीन घेर सके उसके लिए आयोजन करने लगे। किसी ने आभूषण तो किसी ने मकान बेचकर दीवाल बनाने का आयोजन किया है और रूपए की व्यवस्था की है।
दूसरे दिन सूरज उगते ही सब के सब दीवाल बनाने के कार्य में लग गए। मजदूर नही मिलने के कारण घर के सदस्यों को भी काम में लगा दिया। खाये पिए बिना सब के सब ने 24 घण्टे तक तन तोड़ मेहनत की, जितनी जमीन घेर सकते थे उतनी घेरी ।।
राजा निरिक्षण करने निकले। सभी ने बहुत बड़ी जगह घेरी थी। एक जगह आकर राजा अटक गए। किसी ने बहुत कम जगह को घेरा था। और फिर वापस दीवाल भी तोड़ दी। राजा ने पूछा इस जमीन पर किसने दीवाल बनाई है।।
एक सामान्य दिखता आदमी आगे आया। सभी के सभी उस आदमी की मूर्खता पर हँसने लगे। राजा ने कितना ज़ोरदार अवसर दिया और यह आदमी कुछ भी नही कर सका।।
राजा ने उस आदमी से पुछा की तुने मात्र इतनी सी जमीन क्यों घेरी और फिर बाद में वापस इस दीवाल को क्यों तोड़ दिया?? उस आदमी ने राजा को कहाँ- “राजा साहिब! दीवाल बनाते समय मुझे विचार आया की मै कितनी भी जमीन घेरु तो भी दीवाल के अंदर आयी मेरी जमीन दीवाल के बहार रही जमीन से बहुत छोटी रहेगी।। इसलिए मैंने दीवाल को ही तोड़ दिया ताकि मै तमाम जमीन का मालिक होने को अनुभूति तो कर सकता हूँ।”
जो इंसान संकुचितता में जीता है उसके लिए जो भी उसके पास होता है , हमेशा उसे कम और छोटा ही लगता है। पर जब इंसान संकुचितता छोड़ देता है तो पूरी दुनिया उसकी खुद की बन जाती है।।
*वसुंधरा से वसु बनु तो बहुत है*
*इंसान से मानव बनु तो बहुत है*