भारत एक ऐसा देश है जहाँ गुरु शिष्य की परम्परा आदिनाथ परमात्मा के समय से चलती आ रही है। रामायण- महाभारत आदि ग्रन्थो मे इसका प्रचुर मात्रा मे वर्णन आता है। विश्व को गुरूकुल परम्परा से शिक्षा देने का मार्ग भारत ने बताया है।
हमारे यहाँ गुरूकुलो मे निष्पक्षता के साथ अभ्यास होता था। जिसमे गुरू ही सर्वस्व होते थे।और इसी परम्परा ने अर्जुन जैसा धुनरथर विशव को दिया ।चाणक्य, चरक, चन्दगुप्त, पूथ्वीराज आदि महापुरूष हमे इस गुरूकुल से ही प्राप्त हुए है।
यह सारे विरले गुरू वाक्य को ब्रह्मा वाक्य मानकर चलते थे। तभी यह सभी सफलता के शिखर पर पहुचे है। आज समय बदल गया है । हमने संस्कृति को छोड़ा फिर प्रकृति को भी छोड़ा और अब विकृती की ओर आगे बढ रहे है। गुरु के प्रति अहो भाव गया, सदभाव गया, सम्मान भी गया। आज student स्वत: ही शिक्षक बनने लगा। गुरू के वाक्य को मजाक मे उड़ाना उसके लिए आम बात है। गुरू देन से ज्ञान की प्राप्ति होती है- वह यह नही मानता है। वह तो इटरनेट से ज्ञान आता है- इस परिभाषा का आग्रही है। इन सब बातो का बताना इसलिए जरूरी है। जब तक ज्ञानी के प्रति अहोभाव नही होगा तब तक हमारे युवा का विकास नही हो सकता है। स्कूल- काॅलेज हमारे ज्ञान का यज्ञ कण्ड होना चाहिए । जिसे हमने enjoy का मैदान बना दिया है। गुरू जो शिष्टता का पाठ है उसे हमने हास्य का कलाकार बना दिया है। जो कभी भी शोभनीय नही है। हमे इन सब बातो को सोचना है, समझना है। हमारी संस्कृति की ओर कदम बढाना है।
गुरू को हमने आदर्श बनाने की जगह दोस्त बना दिया है।और अगर वह स्ट्रीक होता है तो हम उसकी स्कूल काॅलेज से छूटी तक कर देते है।
पहले अभ्यास का क्रम शिक्षक की इच्छा से होता था।
आज शिक्षक हर शब्द student की इच्छा से बोलता है। मुझे मेरे देश की इस परिस्थिती को सुधारना है।मुझे पुन: तक्षशिला और नालंदा के विश्वविधालयो को जीवित करना है।
मेरे यहा की शिक्षा पद्धति शेक्सपियर नही नरसिंह मेहता देती है। शेक्सपियर तो पत्नी विरह की कल्पना से रोने लगता है। नरसिंह मेहता तो पत्नी के स्वर्ग सिधारने के बात बोलता है।
भलो थयो भांगी जन्जाल हवे भजीसु श्रीगोपाल…..