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दिन की कहानी 3, फरवरी 2016

परम सत्य को समझकर जीवन जीएं

हम आपनी वास्विकता को स्वीकार करने में बहुत कतराते है । व्यक्ति अपने जीवन की सच्चाई को स्वीकार करना तो दूर रहा उसको सुनने को भी तैयार नही होता । जीवन की वास्तविकताए बहुत जटील और कष्ट दायक है । यदि हम उनका उचित मूल्याकंन कर जीवित रहे तो अनेक असफलताओं से बच सकते है ।

उक्त विचार डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने बुधवार को जैन स्थानक में आयोजित चातुर्मासिक धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि अवश्य भावी सत्य को विस्मृत करके जीना अपने प्रति किया गया एक अपराध है । युवा है तो वृद्धत्व आएगा ही यदी वृद्ध है तो मृत्यु अवश्यंभावी है । ये जीवन के परम सत्य है । आठ प्रमुख कर्म है उनमें एक आयुष्य कर्म भी है । यह जीवन की अवस्थिति का आधार है आयुष्य कर्म का उदय । अल्प है तो जीवन छोटा ही रहेगा । आयुष्य कर्म का यदि सुदीर्घ उदय है तो जीवन धारा भी बहती रहेगी । आयुष्य कर्म एक परोक्षर्शिक्त है जिसे हम पहचान नही पाते किन्तु उसका अस्तित्व स्वीकारें तो यह सत्य को स्वीकार करने जैसा है ।

डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि नवपद ओली के तृतीय दिवस णमो आयंरियाणं का महत्व समझाया । आगे कहा कि हम हमेशा सीखते हैं लेकिन भूल जाते हैं । उन्हें याद रखकर अपने जीवन में उतारें । हम खुद चलते फिरते जीव हैं । मकान स्थिर है लेकिन उसमें उगाये गये पेड़-पौधे सजीव हैं क्योंकि वे निरंतर बढ़ते रहते हैं । जिन शासन में हमें जन्म मिला है तो अनमोल धर्मरत्न प्राप्त करना है । जो हमें हमारे प्रभु ने वर्षों पूर्व बता रखा है, विज्ञान उसे अब सिद्ध कर रहा है । परोपकार करें, अपने हाथ-पांवों से दूसरों का भला करें । जब हम हर पल दूसरों के लिए तैयार रहेंगे तो दूसरे भी हमारे लिए तैयार रहेंगे ।

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