“क्यों चीनू! इतनी आधी रात को क्यों उठ गया? क्या नींद नहीं आ रही है? सो जा।”
“साहब ! पानी की बहुत प्यास लगी है। रहा नहीं जाता। कंठ सूख रहा है। नींद नहीं आती। कबसे बिस्तर पर तड़प रहा हूं।” पाँच साल की छोटी उम्र के चीनू ने उपाध्याय श्री प्रेमविजयजी म. सा. को जवाब दिया। उस ज्ञानपंचमी के दिन चिनु ने एकासणा किया था। पू. उपाध्याय महाराज आदि का चातुर्मास वढवाण शहर में था। चीनू पूज्यो के साथ उपाश्रय में ही रहता था। नित्य नवकारशी, रात्रि -भोजन त्याग,जिनमंदिर में भगवंत के दर्शन के बाद ही नवकारशी करना आदि संस्कार उसे धर्मी मां- बाप से ही मिले थे।
अप्रमत्त आराधक, सुविख्यात पू. उपाध्याय महाराज बालक चीनू के बिस्तर के पास गए। प्यार भरे दिल से उन्होंने चीनू को समझाया। चीनू की परीक्षा करने के लिए उपाध्याय महाराज श्री ने कहा ,’प्यास लगी है तो उस (बालटी) से चुने का पानी पी ले।’ “साहब ! अभी तो रातका समय है। मुझे एकासणा है। रात को पानी नहीं पिया जाता।” उपाध्याय महाराज को बालक चीनू का यही एक जवाब था। व्रतदृढ़ता-सत्व की परीक्षा में चिनु पूरी तरह उत्तीर्ण हुआ। महेसाणा जिले के माणकपुर गांव का यह चीनू हीराभाई सात साल साढ़े चार मास की उम्र में ही बालमुनि नवरत्नविजयजी के नाम से प.पु. श्री रामविजयजी गणिवर्य का शिष्य बना। सरलता,नम्रता;विनय, वेयावच्च; अष्ट प्रवचन माता के पालन की दृढ़ता, औचित्य; पापभय आदि गुणों के स्वामी ये मुनिवर बाद में आचार्य श्री विजय नवरत्नसुरीश्वरजी म. बने ।६२ साल के निर्मल चारित्र्य पालन द्वारा वे अपना जीवन सफल बना गए।
पाँच साल का बालक बहुत प्यास लगने पर भी एकासणा दृढ़ता से पूर्ण करता है।इस वर्तमान सत्य कथा से तुमने क्या संकल्प किया? शक्ति अनुसार नियम लेना और और अड़गता से पालन करना यह जरूरी है। इसका लाभ बहुत है। फिर पर्यूषण पर्व में बच्चे भाव होने से उपवास आदि करते हैं तो मां-बाप उन्हें एकासणा करवाते हैं। इसमें पापबंधन होता है । पच्चक्खान ले लेने के बाद पुत्र का उल्लास बढ़ाना और प्यार से अच्छी तरह से तप पूरा करवाना। अगर तप में तकलीफ बढ़ गई, और नियम टूट जाए तो गुरुदेव को पूछकर प्रायश्चित करा दिया जाए तो उसके और आपके पाप का नाश होता है और खूब लाभ होता है। बाद में उसे प्यार से समझाना चाहिए कि बेटा! अब मन-इच्छा हो तब एकासणा आदि करना। बाद में शक्ति आने पर उपवास करना तो नियमभंग का पाप नहीं लगता।
साथ में आज भी बहुत से धर्मी भी बारह मास तिविहार ही करते हैं।उन्हें मन दृढ करना चाहिए कि कई बालक भी जन्म से और छोटी उम्र से भी चोविहार करते हैं तो मुझ से क्यों नहीं होगा? और असहा गर्मी में अगर तिविहार करें तो भी सर्दी में और बरसात की मौसम में चौविहार क्यों न करें? खास करके ऐसे सत्य प्रसंग जान कर बिना जरूरत रात्रिभोजन आदि पाप करते हो तो तुम्हे अपनी आत्मा को समझाना चाहिए कि ऐसे छोटे बच्चे भी चोविहार करते हैं तो मुझे तो जरा भी तकलीफ नहीं होगी । इस तरह मन दृढ कर के रात्रिभोजन; कंदमूल आदि पापों से बचना चाहिए। आज से ही प्रयत्न करें और सफलता प्राप्त कर आत्महित साधे यही अंतर की अभिलाषा।