प्रतिकूल परिस्थिति में भी शांति किस प्रकार बनाए रखें ? यह प्रश्न बहुत महत्व का है । संसार है तब तक अनुकूल एवं प्रतिकूल प्रसंग तो खड़े होने ही वाले हैं । प्रतिकूल प्रसंग प्रतिकूल लगने पर भी हमें उन्हें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए ।
एक अपेक्षा से प्रतिकूल परिस्थितियों उपकारक है । क्योंकि जब प्रतिकूल परिस्थिति आती है तब हम कहां है , उसका हमें सही पता चलता है । प्रतिकूल संयोग में जब हम कुछ चिंतन करते हैं तब हमारी आत्मा में जागृति का संचार होता है ।
अनुकूल परिस्थिति में हमारा ज्ञान कितना प्रगट हुआ है यह पता नहीं चलता । अनुकूल परिस्थिति में लगभग हम जड़ कैसे बन जाते हैं । हमें लगता है कि हमें शांति मिल गई है ।
प्रतिकूल परिस्थिति आते ही हमारे सभी भ्रम टूट जाते हैं । यदि अनुकूल परिस्थिति में हमें शांति मिली होती तो प्रतिकूल परिस्थिति में भी हमें शांति कायम स्वरुप में रहनी चाहिए थी । प्रतिकूल परिस्थिति में यदि शांति भंग होता है तो समझ लेना कि हमें शांति सच्ची शांति मिली नहीं है ।
मनुष्य सुख शांति पाने के लिए जीता है । इस कारण प्रतिकूल परिस्थिति खड़ी होने पर शांति भंग हो जाता है और अब वह आकुल व्याकुल हो जाता है । प्रतिकूल परिस्थिति में हमें खेद नहीं पाना चाहिए बल्कि सोचना चाहिए कि प्रतिकूल परिस्थिति हमारे लिए उपकारी है ।
यदि प्रतिकूल परिस्थिति नहीं आती तो शांति प्राप्त करने के उपायों की खोज करने की इच्छा नहीं होती और प्रयत्न करने का उत्साह नहीं होता । इसीलिए प्रतिकूल परिस्थिति का प्रसंग आने पर उसे स्वीकार करना चाहिए ।
शांति और अशांति का अनुभव अपने मन में होता है । अतः पहले यह जांच कर लेनी चाहिए कि शांति और अशांति का सच्चा आधार कौन है ?
शांति और अशांति का आधार यदि बाह्य परिस्थिति को माना जाए तो हम अखंड शांति का अनुभव कभी नहीं कर सकेंगे । क्योंकि बाह्य स्थिति पर हमारा संपूर्ण नियंत्रण नहीं होता यानी हमेशा यही अनुभव होगा की अनुकूल परिस्थिति आने पर शांति और प्रतिकूल परिस्थिति आने पर अशांति ।
निष्कर्ष यह निकला कि शांति निरपेक्ष स्वाधीन वस्तु नहीं है परंतु बाह्य परिस्थिति के आधीन है परंतु यह गलत है । ऐसा नहीं हो सकता । और ऐसा ही हो तो किसी को कभी अखंड शांति मिले नहीं , शांति निरपेक्ष वस्तु है । कैसी भी परिस्थिति हो , अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति में भी शांति का अनुभव किया जा सकता है मनुष्य किस प्रकार प्राप्त कर सकता है । यह सिद्ध बात है । अब यह शंका होगी की निरपेक्ष शांति मनुष्य किस प्रकार प्राप्त कर सकता है ?
मनुष्य का जीवन देह और आत्मा दोनों के बीच में खड़ा है! आत्मा का आधार लेने पर शांति और देह का आधार लेने पर अशांति मिलती है ।
हम किसका आधार लेकर जीते हैं , उस पर शांति और अशांति निर्भर है देह के आधार पर जीवन जीना यानी खाने में , पीने में , बोलने में , चलने में , देखने में , सुनने में , असंयम रखना और अहिंसा , सत्य , ब्रह्मचारी आदि के पालन में शिथिल बनना । शांति आत्मा का गुण और आत्मा का स्वरूप होने के कारण आत्मा के आधार पर जीवन जीने वालों को शांति का ही अनुभव होगा ।