कथानुयोग सामान्य नहीं, यह एक उच्च साधना है:
भूतकाल में घर के बुजुर्ग रात पड़ने पर पूरे परिवार को एकत्र करके कहते ‘आज महाराज साहब ने व्याख्यान में कैसी-कैसी बातें कहीं, कौन से महापुरुष का दृष्टांत दिया था?’ इस प्रकार की पृच्छा करके अपने भी अनुभव बढ़ाते थे। धर्म की, नीति की बातों से परिवार के सभी लोगों का मानस तैयार किया जाता था।
यह कथानुयोग भी एक उच्च साधना है। यह कोई व्यर्थ की बात नहीं, इसका कथानुयोग का जीवन में वरण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें कथा का स्थान चम्मच का है और उसके द्वारा परोसा जाने वाला तत्व पकवान है। कथा का विचार नहीं करना है, बल्कि कथा के तत्वों का विचार करना है। समय निकालकर भी जैन शासन के कथानुयोग का परिचय प्राप्त करो। कथा कैसे पढ़ें इसकी भी रीत है। संवेग तथा निर्वेद कि मौजे उछलनी चाहिए। पढ़ने और सुननेवाले दोनों के ह्रदय में त्याग-वैराग्य की भावना बढ़नी चाहिए। यह पढ़ने की रीत सीखनी हो तो कुछ पुस्तकें के नाम दूं। इसमें कथा का प्रस्तुतीकरण कैसा करना चाहिए इसकी कला दर्शाई गई है। प्रथम नंबर पर ‘पतन एवं पुनरुत्थान’, दूसरे नंबर पर ‘आर्य संस्कृति का आदर्श’, तीसरे नंबर पर ‘रामायण का रसास्वाद’, चौथे नंबर पर ‘समरादित्य महाकथा: भूमिका के प्रवचन’ कोई भी कथा आपके हाथ में आए तो उसे कैसे पढ़ें? किस प्रकार मूल्यांकन करें? जीवन में कैसे चरितार्थ करें, यह परमतारक परम गुरुदेव ने इन पुस्तकों के माध्यम से हमें सिखाया है। उनके कथानुयोग का वर्णन करती पुस्तकों को बड़े-बड़े आचार्यों ने अनेक बार पड़ा है। प्रवचनों में भी पड़ा है।
आजकल माता-पिता के प्रति का कायिक व्यवहार कैसा करना चाहिए। इसके बारे में समय की सीमा को देखते हुए थोड़ी बहुत बातें समझाई है। अब उनके साथ ही वाचिक तथा मानसिक व्यवहार कैसा होना चाहिए? इसके बारे में भी बात करनी है। दो-दो महासतीयों के नाम बिल्डिंगों से जुड़े हो, उन बिल्डिंगों में रहने वाले, जिनके भी घरों में माता-पिता विद्यमान हो, वे सब सोने से पहले अब उनके पैर अवश्य छुएंगे? सुबह उठकर भी पहले उनके चरणों में मस्तक अवश्य झुकाएंगे ही? शायद बड़े भाई अथवा छोटे भाई के साथ माता-पिता रहते हो तो वहां जाकर भी पैर तो छुएँगे ही? विचार कीजिएगा!