पुत्र के लिए समय मिले, माता-पिता के लिए नहीं:
आज हमने यह बात की जिससे जिन्हें माता-पिता की सेवा पसंद नहीं, ऐसे बेशर्म हमसे भी आकर कह दे। ‘महाराज साहब! घर में दो लोग हैं। धंधे का टेंशन, बालकों के स्कूल का टेंशन, इन सब जिम्मेदारियों के बीच यह सब करना संभव नहीं होगा। साहब! पुराने जमाने में संयुक्त परिवार थे। सारी जिम्मेदारियां वितरित हो जाती थी। अभी तो हमें अकेले ही सब करना होता है। समय नहीं मिलता।’ ऐसी व्यर्थ बातें करके स्वयं को तथा अन्य को धोखा देना या काम नहीं करना। लाख जिम्मेदारियों के बीच भी अपने बच्चे को आप खुद ही नहलाते हैं, उसे कपड़े भी आप ही पहनाते हैं, उसे नजर न लगे इसलिए काला टीका और तिलक भी आप ही करते हैं तथा उंगली पकड़कर स्कूल छोड़ने भी जाते हो। उसे गृह कार्य भी आप ही कराते हो। पुत्र के लिए समय मिलता है तो माता-पिता के लिए क्यों नहीं मिल सकता? पुत्र के लिए समय दे सकते हो और माता-पिता के लिए समय न दे सको-यह मैं कैसे मान लूं?
सभा: सुबह समय मिले, दोपहर को न मिले तो?
दोपहर को आप कदाचित घर में न हो, किंतु आप की पत्नी तो होगी कि नहीं? उसे कहना पड़ेगा कि, ‘मेरे माता-पिता है उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी तेरी भी है। आज तेरे पीहर में तेरे भाई-भाभी तेरे माता-पिता को न संभले तो तुझे कैसा लगेगा? तुझे दु:ख होगा तो मुझे दु:ख नहीं होगा? फिर भी मेरे माता-पिता को भोजन आदि जिम्मेदारी तुझे न संभालनी हो तो तेरे हाथ की रसोई खाना मेरे लिए पाप है।’
जैसे आपको पता है कि पत्नी के भाई को अथवा माता-पिता को नहीं संभालोगे तो उनके साथ व्यवहार ठीक नहीं रहेंगे, वैसे ही उसे भी मालूम होना चाहिए कि तुम्हारे माता-पिता को ठीक से नहीं संभालेगी तो तुम्हारा भी आपस का व्यवहार ठीक से नहीं चलेगा। तुम्हें उसे स्पष्ट कहना चाहिए कि मेरे दो काम नहीं करेगी तो चलेगा, किंतु माता-पिता के काम उनके समय पर ठीक से होने ही चाहिए।
मुझे लगता है कि अब मै चोयणा की (कठोर) भाषा मे नही बोलूंगा तो आप में अपेक्षित परिवर्तन नही आएगा। जो व्यवहार आप अपने माता-पिता के साथ करेंगे, वही व्यवहार आपकी सन्तान आपके साथ करेगी-यह बात याद रखना।