यह उस ईलाची पुत्र की कथा है जिन्हें बाँस पर नाचते नाचते केवलज्ञान हो गया।९९ करोड़ सोनामुहरो का वैभव उनके मन कुर्बान था परन्तु एक तुच्छ कुल में उत्पन्न हुई नटकन्या अजिबोगरीब थी। इस कन्या को पाने के लिये ९९करोड़ तो क्या खुद की जान भी न्योछावर करने को वह तैयार था।
इलाचीपुत्र की ऐसी रागांधता ने उसके माँ- बाप को बहुत ही रुलाया। जाति को भी रुलाया। मित्रो को भी रुलाया। अनेक की नामर्जी तथा आँसु को बेपरवाह करके यह इलाची नटकन्या के लिये नट बना। बांस के ऊपर आधार बिना नाच सकने का कौशल्य प्राप्त किया।
एक बार बाँस पर नाचते- नाचते उसे मुनि के दर्शन हुए। ह्रदय में जबर्दस्त मंथन खड़ा हुआ, जिसने अंत में केवलज्ञान प्राप्त करवाया । देवो ने तत्क्षण ईलचिकुमार के ऊपर पुष्पवर्षा की। साधुवेष दिया। ईलाचीपुत्र ने उसे धारण किया। देवो ने सोने के कमलाकार सिहांसन की रचना की। ईलाचीपुत्र उसके ऊपर आरूढ़ हो गए। कभी राग के शिखर पर पहुँचा हुआ वह इलाची आज ज्ञान के शिखर पर चढ गया। कभी रोते हुये माँ- बाप को त्यागनेवाला यह ईलाची आज केवलज्ञान पाकर देव तथा राजाओं की पर्षदा के सामने देशना देता है। खुद की पहली ही देशना में ईलाची पुत्र ने पिछले जन्म की घटनाओं का वर्णन किया।
राजा, रानी तथा ईलाची पुत्र पर मोहित बनी हुई वह नटकन्या सब एकतान बनकर सुनते रहे।
वसंतपुर नामक नगर था। वहाँ मेरी आत्मा अग्रिशर्मा नामक ब्रम्हाण बनी । मेरे पत्नी का नाम प्रितिमति । परस्पर तीव्र कामराग धारण करनेवाला हमे एक बार जैनाचार्य का परिचय प्राप्त हुआ । जैनाचार्य की देशना मुझे पसंद आ गई। बार- बार देशना सुनी । उसके प्रभाव से मेरे ह्रदय में दीक्षा का मनोरथ प्रकटा। मैने दीक्षा स्वीकारी । मेरे साथ प्रितिमतीने भी दीक्षा ली।
गच्छ में अनेक साधु थे, साध्वियां थी। वे सब पूर्वावस्था में अलग अलग ऊँचे या नीच कुल में उत्पन्न हुए थे। उनकी संयमी तरीके की वर्तमान अवस्था ही हमे याद रखनी थी परंतु हमने वैसा नही किया। उनके पिछले कल के कुल को ही नजर के सामने रखा । इतना ही नही, हमारे ऊंच कुल का बहुत अभिमान किया।
उत्तर गुणों की विराधना होगी यह जानते हुए भी हम पानी से बार-बार हाथ पैर धोते तथा अंदर रहे हुए अभिमान का पोषण करते। हमने कभी कुलमद की आलोचना भी नही की, अंत में बहुत कुलाभिमान के साथ हमारा कालधर्म हुआ।
हम दोनों पहले देवलोक में देव -देवी के रूप में उत्पन्न हुए । वहाँ से च्यवन पाकर मैं इलावर्धन नगर में धनदत्तसेठ के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ तथा प्रितिमति कुलमद के प्रभाव के कारण नीच कुल में नटकन्या के रूप में उत्पन्न हुई।
पिछले जन्म के प्रबल राग के संस्कार अब तक हमारे मन में से बिखरे नही थे। राग तथा वैर लगभग भवांतरगामी बनते है हमारे लिए भी ऐसा ही हुआ। नटकन्या को देखते ही मेरे पूर्वकालीन राग के संस्कार उत्तेजित हो गये । इस राग ने मुझे एक सभ्य पुरुष को शोभे नही ऐसी करनी करने के लिए मजबूर किया।
आज मुनिराज के दर्शन जहाँ हुए वही मुझे जातिस्मरण ज्ञान उत्प्न्न हुआ। पिछला जन्म दिखा। पिछले जन्म में किये हुए के रागसेवन तथा जातिमद;इन पापो का प्रचंड पश्चाताप जागा। इससे मुझे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।
इलाचीपुत्र ने इस तरह खुद के पिछले जन्म का वर्णन सुनाया । जिसे सुनते-सुनते नटकन्या की आत्मा वैराग्य की गंगा में आकंठ डुब गई। उसे भी केवलज्ञान हुआ। देवो ने उसके मस्तक के ऊपर पुष्पवृष्टि की। यह घटना देखते रानी को राग के बंधन की तरफ घृणा पैदा हुई। वैराग्य प्रकटा । उसे भी देशनाभूमि में ही केवलज्ञान हुआ। देवो ने वापिस पुष्पवृष्टि की । रानी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ जानकर राजा को भी कामराग की असारता समझ में आई । वैराग्य प्रकटा । राजा को भी वही केवलज्ञान हुआ । वापिस देवी पुष्पो की वर्षा हुई ।
कभी कभार आँसु की श्रेणी रचा देनेवाले इलाचीपुत्र ने आज केवलज्ञान की श्रेणी रचा दी।
-संदर्भ ग्रंथ: उपदेशप्रासाद।