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धन्नाजी का पूर्वजन्म

प्रतिष्ठानपुर में एक दासी रहती थी । दुर्भाग्य के प्रबल उदय से उसका समस्त परिवार नाश पा गया । सास,ससुर,पति,जेठ,देवर, ननंद कोई भी बचा नहीं। एक मात्र छोटा पुत्र जीवित रहा। हम उसके पुत्र। को विनय के नाम से पहचानेंगे ।

विनय तो बहुत छोटा था इसलिये उसकी वृद्ध उम्र की मां ही लालन – पालन की पूरी जिम्मेदारी अदा करती थी। लोगों के घर कचरा – पोता करके या फिर ऐसे ही घर का काम करके थोड़ा बहुत रुपये वह कमाती। इससे उसका तथा उसके पुत्र का निर्वाह हो जाता। आमदानी का दूसरा कोई साधन नहीं था। घर में थोड़े गाय – भेस थे, झोपडी थी।

विनय आठ वर्ष का हुआ तब घर के तथा उसके बाद अडोस – पड़ोस के पशु चराने का काम करने लगा । *दरिद्रता से अभिशप्त बनी हुई जिंदगी में कलाभ्यास कैसा तथा अनुशासन केसा?*
यह विनय एक बार सुबह के समय मा ने परोसी हुई मक्का की घाट खाकर पशुओं को चुराने निकल पड़ा। आज कोई लौकिक त्योहार था इसलिये घर – घर खीर बन रही उसने देखी। खीर की सुगंध से उसके मुंह में से लार टपक गई ।

अधूरा था वह पड़ोस के बच्चे ने पूरा किया । वे कटोरिया भर – भरके खीर – पीकर बरामदे में आने लगे तथा विनय को पूछने लगे, तूने क्या खाया?
मक्के की घाट …… जवाब मिला।

खी ………खी…….. खी……… आज तो खीर ही पीनी चाहिए । तू एकदम मुर्ख है । रोज खिचड़ी तथा दलिये के सिवाय कुछ खाता ही नही है ।

मित्रो के उकसाने पर विनय हठ पर आया की खीर पीकर ही रहूँगा । घर जाकर माँ के पास खीर मांगी । मिली नही , इससे वह रोने लगा । बालक को रोता देख कर उसकी माँ भी रोइ। दोनों एक दूसरे से ज़्यादा जोर से रोये । पड़ोस की स्त्रियां यह विलाप सुनकर इकट्ठी हुई । व्रद्धा के पास से उसकी समस्या की जानकारी ली । दयालु नारियो ने दूध , घी , शक्कर , चावल , इलायची , जवफल वगैरह सामग्री इस व्रद्धा को दी । उसके बाद व्रद्धा ने खीर बनाई । खीर की थाली भरकर विनय को दी । खुद पड़ोस में घरकाम के लिए गयी ।

उस समय विनय को भावना जागी की कोई साधुभागवंत अगर दिखे तो उन्हें प्रथम यह खीर वाहोराऊ । उसके बाद भोजन करू । आसपास के धनवानों के घर में उसने गोचरिचर्या देखि हुई थी । इसलिए सुपत्रदान करने का उत्तम मनोरथ इस बालक के मन में भी पैदा हुआ ।
मासक्षमण के तपस्वी कोई साधु उस समय भिक्षाटन करते करते गली में आ गए । साधु को खोजती विनय की नज़र उन पर पड़ी । बहुत विनती करके महात्मा को घर ले आया । उसके बाद इस बालक ने उनके पात्र में खीर से भरी हुई थाली उंडेल दी । महात्मा ने उसे रोका , पर वह रुका नही । धर्मलाभ कहकर महात्मा वापिस लौटे ।

खीर तो वापिस मिलेगी पर मेरे घर साधु के दान का अवसर कहाँ मिलने वाला है?मेने सचमुच अच्छा किया। आठ साल का विनय दान देकर दान की इस तरह से अनुमोदना कर रहा है। इसके द्वारा उसने तीव्र पुण्यानुबंधी पूण्य बाँधा।

बालस्वभाव के वश वह थाली चाट – चाटकर खीर का स्वाद लेने लगा। इस समय घरकाम पूर्ण करके वापिस लोटी हुई उसकी माताने उसे थाली चाटते हुये देखा ।

ओहो, मेरा लड़का रोज इतना भुखा रहता है, मैंने तो फिक्र ही नही की। व्रद्धा ने सोचा, दूसरी बार थाली में खीर भरके दी। विनय ने चुपचाप पि ली। वह कुछ बोला नही की मैंने पहले खीर पी नही पर दान दिया है।

यही उसकी लायकात थी। हम अच्छा काम थोड़ा करते हैं तथा उसका प्रचार ज्यादा करते हैं । प्रचार का प्रयत्न करके अच्छे काम द्वारा बाँधे हुये पूण्य को हम खो बैठते है।

खीर ज्यादा प्रमाण में पी थी इसलिये वह पचि नही ।रात के समय इस बालक को अत्यंत पेटदर्द हुआ इससे वह मर गया।

यही विनय दूसरे भव में धनसार सेठ का पुत्र हुआ। क्रमशः धन्नाजी के रूप में ख्याति प्राप्त की , जिनका नाम आज भी जगह -जगह गाया जा रहा है।

– आधारग्रंथ: धन्यचरित्रम्-

८ वाँ पल्लव।

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