ज्ञान के साथ ही वज्रमुनि की गंभीरता देखकर सिंहगिरी गुरुदेव अत्यंत ही प्रसन्न हुए। तत्पश्चात अन्य मुनियों को उनकी ज्ञान की गरिमा का ख्याल कराने के लिए अपने विनीत शिष्यों को बुलाकर कहा, में चार दिन के लिए आस-पास के गांवों में विहार करना चाहता हूँ।
शिष्यों ने कहा , गुरुदेव! हम भी आपके साथ चलेंगे।
गुरुदेव ने कहा, आधा कर्म आदि गोचरी संबंधी दोषों की संभावना होने के कारण सभी को साथ चलना उचित नहीं है।
शिष्यों ने कहा, भगवंत! तो फिर हमें वाचना कौन देगा?
गुरुदेव ने कहा, यह वज्रमुनि तुम्हें वाचना देगा।
शिष्यों ने गुरुदेव के इस वचन को तत्काल तहत्ति कहकर स्वीकार दिया, परंतु उन्होंने लेश भी तर्क नहीं किया कि यह बाल वज्र हमें क्या वाचना देगा।
अहो! ज्ञानी गुरुदेव के वे शिष्य कितने विनीत और समर्पित होंगे। लेश भी तर्क- वितर्क किए बिना उन्होंने गुरुदेव के वचन को तहत्ति कहकर स्वीकार दिया।
सिंहगिरी गुरुदेव के विहार करने के बाद वे सभी मुनिवर बाल वज्रमुनि के पास ग्यारह अंग गत सूत्रों की वाचना लेने लगे। वज्रमुनि अपनी वाक प्रतिभा के द्वारा इस प्रकार सरल विधि से अंगगत पदार्थों को समझाने लगे कि अल्प बुद्धिवाले शिष्य भी अच्छी तरह से सूत्र के रहस्यों को समझने लग गए।
कुछ दिनों के बाद जब गुरुदेव वापस लौटे तब उन्होंने पूछा, अध्ययन कैसे चल रहा है?
सभी मुनियों ने कहा, आपकी कृपा से हमारा अध्ययन अत्यंत ही सुखपूर्वक चल रहा है। अब हमेशा के लिए वज्रमुनि ही हमारे लिए वाचनाचार्य हों।
शिष्य मुनियों के इन शब्दों को सुनकर सिंहगिरी ने कहा, इसकी अद्भुत गुण गरिमा और ज्ञान को बतलाने के लिए ही मैंने यहां से विहार किया था।
उसके बाद वज्रमुनि ने भी तपश्र्चर्यादि विधिपूर्वक गुरुदेव के पास से वाचना ग्रहण की और गुरुदेव के पास जितना ज्ञान था वह ज्ञान ग्रहण किया।