नगरजनों में अपना प्रभाव- चमत्कार दिखलाने के लिए वररुचि ने एक नई योजना बनाई । उसने गंगानदी के जल प्रवाह के नीचे एक यंत्र स्थापित किया। वह प्रतिदिन प्रातः गंगा नदी में खड़ा रहकर गंगा नदी की स्तुति करने लगा । नदी के भीतर रहे यंत्र में वह 108 सुवर्ण मुद्राओं की पोटली रख लेता। स्तुति के बाद वह अपने पैरों से उस यंत्र को दबाता । परिणामस्वरूप वह पोटली उछलकर उसके हाथों में आ जाती ।प्रतिदिन वह इस प्रकार गंगा की स्तुति करने लगा ।लोगों को यह बात फैलने लगी की वररुचि की स्तुति से तुष्ट बनी गंगा मैया प्रतिदिन 108 सुवर्ण मुद्राएँ प्रदान करती है। वररुचि के इस चमत्कार की बात राजा तक पहुँची।
राजा ने मंत्री को कहा, `मंत्रिश्र्वर! यदि चमत्कार की यह बात सत्य हो तो प्रातः काल जाकर यह दृश्य प्रत्यक्ष देखना चाहियें।’
मंत्री ने राजा की बात स्वीकार कर दी।
वररुचि के चमत्कार के वास्तविक भेद को जानने के लिए मंत्री ने एक गुप्तचर को सायंकाल में गंगा तट पर भेज दिया । उसी समय वह वररुचि 108 सुवर्ण मुद्राओं की पोटली गंगानदी के प्रवाह में यंत्र के नीचे छुपाने के लिए वहां आया हुआ था। मंत्री के गुप्तचर ने यह सारा भेद अपनी आंखों से प्रत्यक्ष देख लिया । इधर जैसे ही वररुचि 108 सुवर्ण मुद्राओं की पोटली गंगा नदी के प्रवाह के नीचे छिपाकर अपनें घर गया, उसी समय उस गुप्तचर ने आकर वह पोटली यंत्र से हटा दी और उसे ले जाकर मंत्रीश्वर को सौंप दी।
दूसरे दिन प्रातः काल की मधुर वेला में राजा अपनें मंत्री के साथ गंगा नदी के किनारे पहुँचा। `मेरे चमत्कार को देखने के ये राजा भी आया है’- यह जानकर वररुचि एकदम प्रसन्न हो गया ।
गंगा नदी के जल प्रवाह के बीच में खड़ा रहकर वह गंगा मैया की स्तुति करने लगा । स्तुति के बाद उसने यंत्र को दबाया । परन्तु आश्र्चर्य! रोज की तरह सुवर्ण मुद्रा की थैली उछलकर उसके हाथ में नहीं नही आ पाई। वह एकदम शर्मिंदा हो गया और अपनें हाथों से गंगानदी में रही धन की पोटली को शोधने लगा।
उसी समय मंत्री ने कहा ,`क्या आज गंगा मैया तुम्हें सुवर्ण मुद्राएँ नहीं दे रही है ? अथवा तुम छुपाए हुए धन को ही पुनः – पुनः शोध रहे हो?’ इतना कहकर मंत्रिश्र्वर ने वह सुवर्ण मुद्राओं की पोटली वररुचि के हाथ में थाम दी।
मंत्री ने राजा को कहा,`राजन्! लोंगो को ठगने के लिए यह सायंकाल धन की पोटली नदी के भीतर छुपा देता है और प्रातः काल में यंत्र को दबाकर वह धन प्राप्त करता है। इसकी इस प्रवृत्ति में कोई चमत्कार नहीं है , सिर्फ ,माया – कपट ही है।’
राजा ने कहा ,`मंत्रिश्र्वर! तुमने बहुत अच्छा किया . . . इसके भेद को तुमने पकड़ लिया ।’ इस प्रकार कहकर राजा व मंत्री पुनः अपनें महल में आ गए।
अपना भेद खुल जाने के कारण वररुचि को अत्यंत ही आघात लगा। अपनी इज्जत पर लगी चोट के कारण उसके दिल में मंत्रिश्र्वर के प्रति तीव्र रोष पैदा हुआ । वह किसी भी उपाय से मंत्रीश्र्वर का बदला लेना चाहता था ।