महाराजा ने रानी के सामने देखा । दो क्षण खामोश रह कर उन्होंने कहा :
‘देवी, कुमार से प्रजा नाराज है ।’
‘कुमार ने ऐसा कौन सा अकार्य किया है ?’
‘प्रजाजन का उत्पीड़न…’
‘किस तरह ?’
‘पुरोहित यज्ञदत्त को तू जानती है । उसका पुत्र अग्निशर्मा है । उसका शरीर उसके पूर्वकुत पापकर्मो के कारण बड़ा ही कुरूप है…. उस अग्निशर्मा को कुमार एवं उसके दोस्त रोजाना सताते है- परेशान करते है ।’
‘आपको किसने कहा यह सब ?’
‘महाजन के अग्रणियों ने ।’
‘महाजन को कुमार के विरुद्ध शिकायत करने के लिए आना पड़ा ?’
‘हां, प्रजा में इस बात को लेकर काफी असंतोष, विक्षोभ है । महाजन का कर्तव्य है कि नगर के वातावरण से मुझे खबरदार रखे ।’
रानी कुमुदिनी ने कुछ याद करते हुए कहा :
‘हां… देव । एक दिन कुमार मुझे बता रहा था…
एक ब्राह्मण – पुत्र है… बड़ा ही बदसूरत है…
तिकोना मस्तक…
गोल गोल भूरी आंख….
चप्पट नाक….
छेद जैसे नाक…
लंबे लंबे दांत…..
टेढ़े मेढे छोटे हाथ ….
छोटा …. चप्पट सीना….
लंबा…. टेढ़ा पेट…..
चौड़े चौड़े…. छोटे से पैर…
पीले एवं छितराये – छितराये बाल……
ऐसा कुछ वह बता रहा था उस ब्राह्मणपुत्र के बारे में । और कहता था कि ‘मां, हम रोजाना उसके साथ खेलते है। हमे बड़ा मजा आता है…। ऐसे लड़के के साथ खेलने में बच्चों को मजा आये…. उसमें शिकायत करने की बात मेरी समझ में तो नहीं आती ।’
‘देवी,खेलना एक बात है… जबकि खिलौना मानकर उसे इधर उधर ढकेलना अलग बात है । गुणसेन और उसके मित्र उस ब्राह्मण-पुत्र को पीड़ा दे रहे हैं । उसका मखौल उड़ाते हैं । उसे कुँए में उतारकर डुबकियां खिलाते हैं । उसके माता-पिता को डरा-धमका कर, जोर-जुल्म करके उठा जाते हैं । देवी, यह सब कुमार को शोभा नहीं देता । प्रजा में वह अप्रिय हो गया है….।।।’
‘मेरे प्रजावत्सल महाराजा, इतने बड़े नगर में… ऐसे किसी एकाध लड़के के साथ यदि कुमार ने ऐसा – वैसा कुछ बरताव कर भी दिया , तो उसमें आपको इतना उद्विग्न नहीं होना चाहिए । कुमार ने उस कुरूप बच्चे को मार तो नहीं डाला है ना ?’
‘क्या आदमी को मार डालना, वही गुनाह है ? सताना… उत्पीड़ित करना गुनाह नहीं है ? देवी, तुम कुमार का गलत पक्ष लेकर उसके अकार्य की सफाई पेश कर रही हो… यह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है ।
आगे अगली पोस्ट मे…