अग्निशर्मा का कुरूप शरीर राजकुमार के लिये खिलौना बन गया था । राजकुमार और उसके चापलूस दोस्त अग्निशर्मा पर जोर-जुल्म कर के कुर मजा लेते थे । अग्निशर्मा के माता-पिता राजपरिवार के समक्ष लाचार थे , असहाय थे । अपने कोंखजाये की क्रूरतापूर्ण कदर्थना होती देखकर उनकी आंखें खून के आंसू बहाती थी। उनका दिल भारी वेदना से टुकड़े टुकड़े हुआ जा रहा था । पर आदमी कुछ बातों के आगे असहाय और बेबस बन कर रह जाता है , कुछ नहीं कर सकता ।
चार दोस्तों ने मिलकर आज फिर मौज मनाने की नई योजना बनाई थी।
गुणसेन ने कहा : ‘कल अग्निशर्मा को डोरी से बांधकर , नगर के बाहर जो कुआँ है… उसमें उतार कर डुबकी लगवाएंगे… मजा आ जाएगा। है ना मजेदार योजना ।’
शत्रुध्न ने कहा : ‘कुमार, योजना तो तुम्हारी जोरदार है ।’ कुष्णकांत बोला : ‘हम उसका जुलूस निकाल कर नगर के बाहर ले चलेंगे ।’
जहरीमल बोला : ‘गधे को रंगबिरंगे रंग से सजायेंगे… अग्नि को भी रंग डालेंगे… फिर देखना केसा मजा आता है । पुरे रास्ते में लड़कों की टोली चिहुँकाती-चिल्लाती चलती रहेगी… तालियां बजायेंगे…। और लोग हंस हंस कर मजा लेंगे अपने कारनामे का ।’
गुणसेन ने कहा : ‘ठीक है… तू अग्नि को रंग लगाना …. पर उसके सिर पर कांटे का ताज पहनाना, और लाल-पीले फूलों की माला उसके गले में डालना । और सिर पर पुराने सुपड़े का छत्र रखना ।’
शत्रुध्न नाच उठा…’वाह भाई वाह । कल का जुलूस तो वाकई में मजेदार रहेगा । क्षितिप्रतिष्ठित नगर के इतिहास में इतना मनोरंजक जुलूस तो शायद पहली बार ही निकलेगा ।’
जहरीमल ने कहा…’कल सबेरे-सबेरे ही मैं कालिये कुंभार के वहां जाकर उसके भूरिये गधे को ले आऊंगा… और अग्निशर्मा को भी तो लाना होगा ।’
अरे… तू तेरे गधे को ले आना… शर्मा को तो मैं खुद उठा लाऊंगा…।
शर्मा की माँ उसे घर में ही छुपाकर रखेगी… इसलिए मुझे ही जाना होगा ।
मैं उसके घर में घुसकर उसे उठा लाऊंगा…। मुझे उसका बाप भी नहीं रोक सकता है ।’
आगे अगली पेस्ट मे….