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किसी का मजा, किसी को सजा – भाग 1

‘कल बड़ा मजा आया , नहीं ?’
‘अरे… बात ही मत पूछो… वाकई मजा आ गया था।’
‘ओह, मेरा तो हंसने के मारे बुरा हाल था ।’
‘सचमुच, ऐसा जुलूस तो हमारे नगर में पहली बार ही निकला होगा ।’
‘कुमार , तुम भी क्या एक एक तरकीब खोज निकलते हो मौज मनाने की । जवाब नहीं तुम्हारा ।’
‘पर… वह पुरोहित का छोकरा , बाकी… जँच रहा था गधे पर । इस शत्रुध्न ने तो ढोल पीट पीट कर सारे गाँव को सर पर उठा लिया था ।’
‘और…यह कुष्णकांत… वाह। महाराजा अग्निशर्मा की क्या छड़ी पुकारी थी इसने । अरे… और तो और… वह गधा भी अपनी सुरीली आवाज में ढेचुम… ढेचुम… कर के सुर मिला रहा था ।’
‘कितने सारे लड़के शामिल हुए थे जुलूस में । जैसे कोई राजा की सवारी निकली हो ।’
राजकुमार गुणसेन के सुसज्ज शयनखंड में चार दोस्त मिलकर गपशप किये जा रहे थे ।
सेनापति का लड़का जहरीमल, मंत्री का बेटा शत्रुध्न और राजकुमार गुणसेन का चचेरा भाई कुष्णकांत , ये तीनों लड़के राजकुमार गुणसेन की चापलूसी करने वाले थे । कुमार गुणसेन के अच्छे-बुरे कार्यो के साथी थे , साक्षी थे ।

कुमार गुणसेन का एक ही कार्य रहता था… औरों को दुःखी कर के मौज मनाना । परपीड़न करके आनंद मनाना । इसके लिए उसने नगर के प्रजाप्रिय पुरोहित यज्ञदत्त के बदसूरत -कुरूप पुत्र अग्निशर्मा को शिकार बनाया था। अग्निशर्मा जन्म से ही कुरूप था । बेडोल था। उसकी माता सोमदेवा ने बरसों तक तो उसे घर से बाहर भी नहीं निकाला था , पर एक दिन जब वह राजमार्ग पर यों ही खेलने को निकल आया तब मस्तीखोर राजकुमार की आंखों में चढ़ गया ।

भूरी गोल आंखें… तिकोना सिर, बिल्कुल छप्पट नाक, और कान की जगह मात्र दो छेद… लंबे लंबे पीले दांत… लंबी-टेढ़ी गरदन… छोटे-छोटे पतले हाथ… छोटा सा सीना और फुला हुआ पेट , मोटी पर छोटी और खुरदरी जांघें… चौड़े और टेढ़े-मेढ़े पैर, सिर पर पीले और छितराये छितराये से बाल ।
ऐसा था अग्निशर्मा का कुरूप शरीर ।

आगे अगली पेस्ट मे….

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