‘देवी, आश्चर्य हो रहा है ना ? अजीब सा लग रहा है ना ? और कोई कल्पना में मत
जाना। अपन को कुछ दिन इसी तरह गुजारने होंगे !’
‘पर क्यो ?’
गुणमंजरी अचानक बावरी हो उठी….. वह पलंग पर से उठकर आकर विमलयश के चरणों मे
बैठ गई…।
‘मैने एक प्रतिज्ञा की थी…!’
‘प्रतिज्ञा ? कब ? किसलिये ?’
‘जब तस्कर तेरा अपहरण कर गया था, और मैने तुझे लाने का बेड़ा उठाया था, तब
मैने एक संकल्प किया था कि….
‘काहे का संकल्प ?’
महाराजा ने घोषणा कर दी थी की, ‘जो कोई व्यक्ति राजकुमारी को ले आयेगा उसे
मेरा आधा राज्य दूंगा और राजकुमारी की शादी उसके साथ कर दूंगा । इस तरह तेरी
मेरी शादी तो होगी ही, यदि मै तुझे सुरक्षित लौटा लाऊं तो ! यदि शादी होगी तो
हम दोनों एक माह तक निर्मल ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे ।’
तुझे मै लिवा लाया सुरक्षित! मुझे मेरी प्रतिज्ञा का पालन करना चाहिए ना ?’
गुणमंजरी ने विमलयश की आँखों मे आंखे पिरोते हुए देखा…। उसने उन आंखों में
निर्मलता…. पवित्रता का तेज देखा….। प्यार की खुशबू देखी…. और गुणमंजरी
के अंग अंग में पवित्रता की एक लहर सी उठी । उसकी देहलता कंप गई… वह बोल उठी
:
‘जो आपकी प्रतिज्ञा वही मेरी प्रतिज्ञा, मेरे नाथ ! ,एक माह देह से अलग
रहेंगे, पर दिल से तो कोई जुदा, नही कर सकता मुझे !’
विमलयश की आंखे खुशी के मारे छलक आयी । गदगद स्वर में उसने कहा :
‘मंजरी, सचमुच तू महान है….।’
‘मुझे महानता देने वाले तो आप ही हो मेरे प्राणनाथ !
आपको पाकर मै कतार्थ हो गयी हुँ। मेरा जीवन— स्वप्न साकार बन गया । मै कितनी
खुश हूं आज….! आप मेरे सर्वस्व हो !’
आगे अगली पोस्ट मे…