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सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 1

मालती ने विमलयश के शयनखंड को नया निखरा हुआ रूप दिया था । नये सिंगार से
खंड को सजावट की थी । विमलयश के पलंग के सामने ही एक सुंदर स्वर्णदीप जालाया
था । कमल के खिले हुए पुष्प पर एक सुंदर सलोनी आकृतिवाली नारीमूर्ति के हाथ मे
अर्धचंद्रकार पाँच प्रदीप रचे हुए थे । पांचो प्रदीपो के सोम्य प्रकाश से पूरा
शयनखंड झिलमिल-झिलमिल हो रहा था ।
विमलयश शयनखंड में बैठ हुआ था । नीरव खामोशी क़ा वातावरण था । उसकी नजरे
स्वर्णदीप की ज्योति पर गिरी….. प्रदीपो की ज्योति में उसे पंचपरमेष्टि
भगवन्तों की आकृति उभरती दिखाई दी…. उसने ‘नाम: पंचपरमेष्टिभ्य:’ बोलकर
भावन्दना की ।
….और उसकी स्मृति में अमरकुमार उभरने लगा….
‘अभी तक वे आये नही…. कैसे आएंगे भला ? जब तक मै सात कोडो मै राज्य प्राप्त
नही करू वहां तक तो नही आएंगे ना ? पर अब तो राज्य भी मिल गया ! उन्हें तो
कल्पना नही हो सकती कि मुझे राज्य मिला है ! वे तो मुझे मरी हुई मानते होंगे !
जब वे यहां पर आयेंगे और जब भेद खुलेगा तब ? उनके पाश्चाताप का पार नही
रहेगा। वह शर्मिंदा हो जायेंगे । उन्हें अपनी भयंकर गलती का कितना अनुताप होगा
!
नवकार मंत्र के अचिंत्य प्रभाव मैने मेरे जीवन मे अनुभव किये है । उस
महामंत्र के प्रभाव से ही मुझे आज राज्य भी मिल गया है । अचानक कैसी
परिस्थितियां पैदा हो गयी ? यदि चोर का उपद्रव न हुआ होता तो ? राजकुमारी को
चोर उठाकर नही ले गया होता…. तो ? महाराजा आधा राज्य देने की और राजकुमारी
की शादी की घोषणा नही करते ? तो मुझे राज्य मिलता भी कैसे ?
और यह गुणमंजरी….! ! मुझे उसके साथ शादी रचानी होगी ! यह भी कर्मो का अजीब
खेल है ना ? औरत औरत से शादी करेगी ! परन्तु उस बेचारी को मालूम ही कहा है
कुछ ? वह मुझे राजकुमार ही मान रही है ! अरे, इस नगर मे सभी तो मुझे राजकुमार
समझ रहे है !
गुणमंजरी के साथ शादी करनी पड़ेगी । जब तक अमरकुमार का मिलन नही हो वहां तक
मेरा भेद मै खोल नही सकती ! हां, मुझे गुणमंजरी से अलग रहना होगा । उस
भोलीभाली राजकुमारी को मै वैषयिक सुख नही दे पाउंगी । स्पर्श सुख की उसकी
कल्पनाएं साकार नही हो पाएगी । उसे कितना धकका पहुचेगा ?
नही… नही, मै उसे प्यार से मना लुंगी । समझा दूंगी ! एक झूठ को बनाये रखने
के लिए मुझे न जाने कितने झूठ रचाने पड़ेंगे….? कितने ढोंग बनाने होंगे ? करू
भी क्या ? और कोई चारा ही नही है ना ? उसे झांसे में रखे बगैर छुटकारा नही है

शादी करने की मना ही कर दूं तो ?

आगे अगली पोस्ट मे….

राज्य भी मिला, राजकुमारी भी!– भाग 7
September 28, 2017
सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 2
September 28, 2017

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