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चोर का पीछा – भाग 4

इधर छुपे भेष में बेनातट नगर में प्रविष्ट हुआ चोर यह जान पाया कि उसे
पकड़ने के लिये और राजकुमारी को वापस लाने के लिये विमलयश ने ही घोषणा की है।
चोर ने अट्टहास्य किया…. वह विमलयश के महल के निकट आया ।
महल के इर्दगिर्द घूमकर उसने कोई जान न पाये इस ढंग से बारीकी से अवलोकन
कर लिया । अपने मन में एक घातक योजना भी बना डाली ।
रात उत्तर आयी बेनातट पर ।
आकाश की गंगा में से चांदनो की श्वेत शुभ्र धारा धरती पर जैसे की उत्तर
आयी थी । जैसे ढूध की भरी तलैया नजर आ रही थी ।आसपास का वातावरण शांत था पर
भयाक्राँत था …। करीब रात का दूसरा प्रहर पूरा हो गया था। बेनातट नगर के
राजमार्ग सुनसान हो चुके थे। सभी मकान एवं खिड़कियां बंद थे। नगररक्षक एवं सेना
के सुभट लोग भी अपने अपने घरों पर आराम कर रहे थे। विमलयश ने ही सबको छुट्टी
दे रखी थी ।
विमलयश के महल के दरवाजे खुले थे । महल का एक एक खंड बिल्कुल खुला था ।
कमरे में रही हुई जौह-रात की पेटियां सब खुली पड़ी थी । न कोई रक्षक था… न
किसी को ताला लगा था ।
एक कमरे में विमलयश श्री नवकार मंत्र के ध्यान में लीन बना था। ध्यान
पूर्ण करके विद्यादेवीयों की आराधना में प्रवुत्त हुआ। उसने दो विद्यादेवीयों
की स्मृति की : एक अद्दश्यकरणी और दूसरी हसितश्तबलिनी ।
दोनों विद्यादेवियां प्रकट हुई ।
विमलयश अक्षय हो गया ।
उसके शरीर में सौ हाथियों की शक्ति संक्रमित हो गई । त्रिद्यादेवियां
अन्तर्धान हो गयी … और इधर तस्कर ने महल में प्रवेश किया ।
उसकी ताज्जुबी का पार नहीं था … उसने महल तक के आने के रास्ते में किसी
भी आदमी को पहरे पर खड़े या चहलकदमी करते हुए भी नहीं देखा । न कोई सैनिक वहां
पर थे और विमलयश के महल के इर्दगिर्द भी जरा भी चौकी या सुरक्षा का प्रबन्ध
नहीं था । महल के दरवाजे खुले थे । सावधानी से , नंगी तलवार हाथ में लिए चोर
महल में घुसा । उसने महल के कमरों में जवाहरात की पेटियाँ बिल्कुल खुली पड़ी
हुई देखी… वह तो आश्चर्य से स्तब्ध रह गया ।
वह पूरे महल में घूम आया…पर उसे विमलयश का दर्शन नही हुआ ।

आगे अगली पोस्ट मे…

चोर का पीछा – भाग 3
September 28, 2017
चोर का पीछा – भाग 5
September 28, 2017

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