‘नहीं , यह कभी नहीं हो सकता ।’
राजकुमारी तपाक से खड़ी हो गई । उसकी आंखों का भय चला गया । आंखों में
शोले भड़कने लगे । उसके होंठ कांपने लगे । न जाने कहां से उसमे अध्ष्य ताकत
उभरने लगी ।
‘तो तू यहां से बाहर नहीं जा सकेगी । सूरज की किरण भी तुझे छू नहीं
पायेगी यहां पर ।’
‘चाहे मेरे प्राण यही निकल जाय। ‘
‘अरे पागल , ऐसे कोई मरने दूंगा …? इसलिये तुझे इतनी मेहनत करके यहां
लाया हूं ? लोग मेरे नाम से पते की भांति कांपते है । रात को कोई बाहर निकलने
की हिम्मत नहीं करता … तू जानती नहीं है मुझे ?’
‘जानती हूं …. अच्छी तरह जानती हूं …. एक चोर को , लुटेरे को जानने
का क्या होता है ?’
‘ए छोकरी … बकवास बंद कर ।’
‘सच हमेशा कड़वा होता है रे तस्कर ।’
‘इतना गुमान ? अभी बताता हूं तुझे । तेरी यह भरपूर जवानी …’ तस्कर
गुणमंजरी की तरफ आगे बढ़ा ।
‘वहीं पर खड़ा रह … दुष्ट जरा भी आगे बढ़ा तो मैं जीभ कुचल कर मर जाऊंगी
।’ तस्कर के आगे बढ़ते कदम रुक गये । गुणमंजरी की धमकी से वह घबरा गया । उसने
धीरे से आवाज मुलायम बनाते हुए कहा :
‘राजकुमारी… तू मेरे सामने देख .. आखिर तुझे किसी न किसी के साथ शादी
तो करनी ही होगी ना ? तो तू मुझे ही पसन्द करले … मैं तेरा पुजारी बन जाऊंगा
।’
‘बकबक बंद कर बेवकूफ । इस जन्म में मैं किसी और पुरुष को पाने का सोच भी
नहीं सकता ….। मैं तो सर्वस्वभाव से विमलयश की हो चुकी हूं …. मन से …
देह से … आत्मा से ।’
अच्छा … तो यह राज है … वह परदेशी राजकुमार विमलयश …?’
‘हां , वही विमलयश … मैं उसकी हो चुकी हूं …।’
‘पर वह जिन्दा ही नहीं रहेगा तब ? ‘ तस्कर ने दांत किटकिटाये …। कमर
में से छुरी निकालकर ऊपर घुमाई …
‘इस छुरी से मेरी जान ले ले ….।’
‘तब फिर तू विमलयश को कैसे पा सकेगी ?’
‘जिन्दा रही तो मेरे विमलयश की हो के रहूंगी और यदि मर भी गयी तो मुत्युंजय
होकर उसे पाऊंगी , इसके अलावा मेरा कोई संकल्प नही है ।’
दिल में घुमड़ती पीड़ा की आंधी राजकुमारी के चेहरे पर उभरने लगी थी । उसके
स्वर में असहनीय उग्रता – व्यग्रता उफन रही थी । उसने कहा :
‘ऐ तस्कर । क्या तू इतना भी नही समझ पाता है कि स्त्री के एक ही दिल
होता है … और उसके ह्र्दयमंदिर का आराध्यदेव भी एक ही होता है ? तू मेरे
प्रेम की अपार ताकत को झुका नहीं सकता । मिटा नही सकता । मेरे संकल्प के बल को
बदल नही सकता ।’
आगे अगली पोस्ट मे…