मालती तो नाच उठी । उसका मन आनंद से भर आया । उसे शत -प्रतिशत भरोसा था कि
विमलयश ही यह कार्य कर पायेगा। विमलयश महल में आया। मालती ने विमलयश को बधाया
…. ‘मालती…. तू यही पर रहना। मै राजमहल में जा रहा हुँ। महाराजा से भी
ज्यादा आश्वासन की जरूरत महारानी को है ।’ ‘हां…हां …. कुमार ,महारानी को
जाकर तुम दिलासा दो , वर्ना रानीजी का क्या होगा ? आखिर माँ है वो… गुणमंजरी
तो उनके लिए प्राणों से भी ज्यादा प्यारी है …. एकलौती बेटी है ।’
विमलयश त्वरा से सीधा राजमहल में पहुंचा । राजमहल में विमलयश की ही चर्चा
थी… महाराजा की घोषणा विमलयश ने स्वीकारी है ….’यह जानकर कुछ लोग आश्वत
हुये थे तो कई लोग डर भी गए थे ।
विमलयश सीधा अंतःपुर में गया ।
महारानी बेहोश थी। महाराजा गुमसुम हो कर बैठे थे। मंत्रीगण भी स्तब्ध सा
किकर्तव्यविमूढ होकर बेठा था।
विमलयश ने महा:राजा को प्रणाम करके कहा : कृपावन्त, आप धीरज रखे ,स्वस्थ बने
… कल सवेरे गुणमंजरी को आप के चरणों मे हाजिर कर दूंगा । आप उदासी को दूर
करे। महारानी को स्वस्थ बनाये…. उन्हें होश में लाये ।’
महाराजा ने विमलयश के सर पर हाथ फेरते हुये वात्सल्य भरे स्वर में दुःखी होकर
कहा : ‘नही … विमल नही… तू परदेशी राजकुमार है , तू उस चोर को पकड़ने का
दु:साहस मत कर। वो चोर कितना जालिम है मै जानता हूँ।
आपका सोचना सही है…. पर अभी आपने विमलयश का पराक्रम देखा नही है …..विमलयश
की कला देखि है, पर ताकत नही देखी है। आज मौका मिला है । आप मेरी ताकत भी देख
ले। श्री नवकार मंत्र के अचिंत्य प्रभाव से क्या संभव नही है इस संसार मे ? आप
निश्चित रहे। चोर का अंत अब निश्चित है। मुझे मेरे महामंत्र पर पूरा भरोसा है
।’
‘और यदि तूने चोर को पकड़ लिया …. राजकुमारी को सुरक्षित ले आया वापस …तो
मेरा आधा राज्य तेरा ! और राजकुमारी भी तेरी !’
विमलयश के शरीर मे सिहरन फेल गई …….. ‘सात कोड़ी में राज्य’ वाली बात अब
आकार ले रही थी…..। उसे अपनी महत्वाकांक्षा की सिद्धि करीब नजर आने लगी।
उसने राजा-रानी को प्रणाम किया और अपने महल में चला आया।