महाराजा जिसे चोर का सर मांन रहे थे…. वह दरअसल में तो एक मटका था, जिसे
की सफेद रंग से रंग दिया था । जैसे ही मटका हाथ मे आया….महाराजा चौक उठे ।
उन्होंने किनारे की तरफ नजर उठायी तो कुछ भी दिखता नही था। तुरन्त महाराजा
तैरते हुए लौटे किनारे पर। तो वहां न तो धोबी था…. न ही घोड़ा था… केवल गधा
खड़ा था । महाराजा सारी बात समझ गए कि वह धोबी ही चोर था ।
वे गीले कपड़े में दरवाजे तक आये… चौकीदार को आवाज लगाई पर चौकीदार ने दरवाजा
नहीं खोला…. महाराजा ने उन्हें परिस्थिति समझाने की भरसक कोशिश की । जो
घटना हो गयी थी उसका बयान किया पर द्वार-रक्षक तो एक ही बात पर अड़े हुए थे ।
‘हमारे महाराजा तो कुछ देर पहले ही घोड़े पर बैठ कर चले गये है चोर को मार कर।
तुम नये कहा से पैदा हो गये ?’
महाराजा मन मसोस कर रह गये । उन्हें रानी की चिंता हो रही थी । पर करते भी
क्या ?’ और कोई चारा ही नही था । सारी रात महाराजा ने किले के बाहर बितायी….
सुबह में जब द्वार खुले तो चौकीदार अपने महाराजा की दुर्दशा देखकर रो पड़े । वे
तो बेचारे काँपने लगे, पर महाराजा कुछ भी कहे बगैर अपने महल में चले गये कपड़े
वगैरह बदल कर सीधे रानी के पास पहुँचे। महारानी स्वयं चिंता में थी क्योकि दो
घटिका में वापस आने का कहकर महाराजा गये थे, पर अब तो पूरी बीत गयी थी।
महारानी ने बेसब्री से पूछा : ‘आप तो दो घटिका में लौटने वाले थे, इतनी देर
क्यो लगा दी ? सारी रात गुजर गई… गुणमंजरी भी आ गयी है ना ? ‘
तू क्या बोल रही है ?’ महाराजा का मन किसी दुर्घटना की आशंका से काँपने लगा था
।
‘अरे आपको क्या हो गया है ? आप खुद तो रात को दूसरा प्रहर बीतने पर आए थे और
मुझ से कहा था : ‘चोर पकड़ा गया है… अब मै गुणमंजरी को साथ लेकर महाकाल के
मंदिर में जाऊंगा…. मिठाई की थाली चढ़ाने की मानता रखी है और आप गुणमंजरी को
लेकर घोड़े पर सवार होकर रवाना हुए थे ।’
राजा रो पड़े…. ओह… मेरी कुमारी को वह दुष्ट चोर उठा ले गया ।’ महारानी ने
जब महाराजा से सारी बात जानी तो महारानी अपने आप को संभाल नही सकी । वह बेहोश
होकर गिर गई। पूरे राजमहल में क्या अब तक तो पूरे नगर में ये समाचार फैल गये
है। सब लोग रो रहे है। सभी भय से कांप रहे है।
आगे अगली पोस्ट मे…