रात के प्रथम प्रहार में उधर से एक ग्वालिन निकली सर पर दही की मटकी उठाये हुए
। महामन्त्री ने ग्वालिन को बुला कर पूछा : ‘क्या है तेरी मटकी में ?’ ग्वालिन
ने चुप चाप मटकी दिखायी….. । महामन्त्री ने देखा तो अंदर शराब भारी थी….
महामंत्री की जीभ लपलपा गयी। उन्होंने पैसे देकर मटकी ले ली। खुद महामंत्री ने
जमकर शराब पी और सेनिको को भी पिलाई….। थोड़ी देर में सब पर बेहोशी का दौर
छाने लगा। शराब में बेहोश करने की दवाई डाली हुई थी। सभी बेहोश हो गये….।
ग्वालिन के भेष में रहे उस चोर ने महामंत्री को हथकड़ी पहना दी….। महामंत्री
के सारे कपड़े निकाल दिये । मुह पर महामंत्री के ही जूते रखे। ऊपर से गंदगी
की…. सब सेनिको के कपड़े उतारे…. और वहां से रवाना हो गया ।
सुबह हुई। महाराजा खुद महामंत्री की तलाश करने निकले। चौराहे पर आये….
तम्बू में गये… देखा तो महाराजा खुद हँस पड़े थे। साथ के आदमियों ने तुरंत
महामंत्री को जगाया… महामंत्री जगे। अपनी दुर्दशा देखकर शरम के मारे नीचा
मुँह किये बैठे रहे ।’
‘मालती , इस चोर ने तो गजब ढा रखा है ।’
‘यही बात कर रही हु ना तुम से । महाराजा को बड़ी भारी चिंता हो रही है…..।
मुझे लगता है…. अब महाराजा स्वयं ही उस चोर को पकड़ने के लिए निकलेंगे और तब
तो उस चोर की कयामत आ गयी समझो ।’
‘इस चोर को बुद्धिबल से पकड़ा जा सकता है….। या फिर विद्याशक्ति से। बाकी
मुकाबला करके इस चोर को पकड़ना नामुमकिन है ।
ठीक है…. अब तू तेरे कमरे मे जा कर सो जा रात बहुत हो चुकी है…।’ ‘
और तुम वीणा बजाओगे ?’
‘वीणा बजाने का तो व्यसन लग चुका है ।’
‘तुम्हे बजाने का व्यसन लगा है…. उधर उस राजकुमारी को सुनने का शौक लगा हुआ
है ना ।क्या जोड़ी मिली है ! ‘
मालती मुह में आँचल दबाती हुई अपने कमरे में दौड़ गयी….! ! !