इधर भीमा की पत्नी आई महाराज को दर्शनार्थ। उसने भी महाराज को भोजन के लिए
आमंत्रण दिया ।
बाबा ने कहा : ‘तेरे घर मे तो पैर रखना पाप है….।’
‘क्यो बाबाजी, ऐसी बुरी बात क्यो करते हो ?’ ‘और नही तो क्या तेरा पति खुद्द
उसकी माँ के साथ… विश्वास नही हो तो रूबरू देख लेना,’ सुनकर भीमा की पत्नी
को गुस्सा आ गया ।
रात्री में बाबाजी भीमा के घर के पास ही एक पेड़ के नीचे अपना डेरा लगा कर जम
गए। आधी रात गए घर मे बड़ा हंगामा मच गया । बुढया बेटे का मुह सूंघने के लिए
खटिया के पास गयी । नीचे जुककर बेटे का मुह सूंघती है…., इधर बेटा घबराया
….. वह सोचता है ‘जरूर डायन है… वह डंडा लेकर खड़ा हो गया… । उधर भीमा की
पत्नी भी हाथ मे लकड़ी लेकर छुपी हुई थी…. वह भी दौड़ती हुई आ गयी…. और सासु
को मारने लगी… तीनो लड़ते झगड़े हुए घर के बाहर रास्ते पे आ गए । इधर मौका
देखकर बाबाजी घुस गए घर मे…. और जो कुछ भी था घर मे, लेकर , अन्तर्घान हो
गये !
जब भीमा बाबाजी को खोजता हुआ उनके स्थान पर पहुँचा तो बाबाजी का पता नही था।
खोजते खोजते थक गया। घर मे गया तो सब कुछ चोरी हो गया था…. बेचारा सर पीटकर
रह गया ।’
विमलयश इतना हँसा की उसकी आँखों मे आंसू आ गये….।
‘मालती,…. इस नगर में अब इन बाबा लोगो से भी बचना होगा…। अच्छा तो यह हुआ
कि तेरे आदमी ने बीड़ा नही उठाया… वरना….’
‘हुँ… वह क्या बीड़ा उठाएगा ? कुमार, उसे तो पान के बीड़े दे दो, चबा
जायेगा….।’
‘मालती, फिर क्या हुआ ? कोई आगे आया कि नही चोर को पकड़ने के लिए ।’
‘कुमार, आगे तो बहुत सारे लोग आये…. पर जो आये सभी लूट गये। नगर में तो
हाहाकार मच गया है । आखिर महामन्त्री ने हिम्मत की चोर को जिंदा या मुर्दा
पकड़ने के लिए। महामन्त्री ने गली गली में दस्ते लगा दिये । नगर के चारो दरवाजो
पर शास्रसज्ज सेनिको को बिठा दिया और खुद नगर के चोराहे पर तंबू गाड़ कर बैठे।
आगे अगली पोस्ट मे…