विमलयश की विणा आज जैसे पागल हो गई थी ।गगन के गवाक्ष में चांद को मिलने के
लिए बेतहाशा होकर स्वर का पंखी पंख फिलाये ऊपर ही ऊपर चढ़ा जा रहा था ।
विमलयश की नजर अचानक अपने झरोखे के निचे गई । उसे लगा कोई मानव आकृति खड़ी है
….। अरे अभी इस वक्त आधी रात गये को यहाँ खड़ा है ……? विमलयश ने गौर से
देखा तो …. ओह…. यह तो राजकुमारी लगती है …..। विणा को बाजू पर रखकर
विमलयश नीचे उतरा ….। महल का दरवाजा खोलकर वह बाहर निकला ।
तुमने क्यों विणा बजाना बंद कर दिया? तुम्हारी विणा के सुर ही तो मुजे यहाँ तक
खींच लाई है….
जबर दस्ती खींच लाये है ….। श्वेतशुभ्र चांदनी के प्रकाश में विमलयश ने देखा
यो राजकुमारी कर मासूम चेहरे पर प्रीत के खंजन उठ रहे थे।
तब तो मेरी विणा में तुम्हारी नींद चुरा ली ….नही? राजकुमारी माफ कर देना
…..
नही ऐसे माफी कैसे मिलेगी ? विणा ने केवल मेरी नींद ही चुराई होती तो ठीक था
….पर…
राजकुमारी ने आगे बोलते -बोलते ठिठक गई…..।टकटकी बांधे विमलयश को निहारने
लगी ।फिर एक गहरी सांस छोड़ते हुए उसने अपनी निगाहें जमीन पर डाल दी …..।
यह मेरी खुशनसीबी है राजकुमारी की मेरी विणा के सुरो ने किसी के दिल पर दस्तक
दे दी ….। किसी ने उन भटकते सुरो को अपने भीतर सहेज लिया !परंतु ….
परन्तु क्या परदेशी ?
इस समय यह पर आप का इस तरह आना ….
में भी जानती हूं …उचित नही है ,पर क्या करूँ ? दिल के लगी क्क़ब्जी अनुचित
भी ककरने को मजबूर बना देती है ! कौन समजाये ? कहा जाए ? फिर भी …. जाती हूँ
…. खेर ! पर मेरे परदेशी ….कभी मुझे’ कोई ‘ मानना । मैने केवल विणा के
स्वरो को ही नही पकड़ा है ….अपितु विणा के वादक को भी अपने दिल की दुनिया मे
कैद कर लिया है ।
राजकुमारी हिरनी सी दौड़ती हुई अपने महल में चली गई ।
विमलयश ने ऊपर आकर वापस विणा को अकृत की। सुरो का काफिला लय और अलंकार का समा
बांधे बहने लगा …..।
आगे अगली पोस्ट मे…