राजसभा पूरी हो गयी। विमलशय मालती के साथ घर पर पहुँचा। रास्ते मे मालती
एक अक्षर भी नही बोली। विमलशय ने घर पर आते ही मालती से कहा- मालती। मालती की
आंखों की आँसू थे। तू रो रही है ? क्यों ? में चुंगी नाके का मालिक हुआ यह
तुझे अच्छा नही लगा ? वह तो अच्छा लगा, पर तुम कल यहाँ से..अरे बाबा। मै कोई
अकेले थोड़े ही जाऊँगा ? तुझे भी साथ ले जाऊंगा। क्यो नही आयेगी मेरे साथ ?
मै ? अरे मै तो अभी चल दु… पर इसे रोटी कौन बना देगा ? अपने पति की तरफ
उँगली करते हुये कहा।
ओहफोह यह तो अपने महल पर आ जायेगा भोजन करने के लिए, और यहाँ पर बगीचा भी
सम्भलता रहेगा। मालती ने अपने पति से पूछ लिया पति की अनुमति मिल गयी। मालती
तो जैसे आकाश में उड़ने लगी। मालती, महल में जाकर नाचना अब भोजन कब तैयार
होगा? अरे कैसी पागल हु मै अभी अभी बस दो घटिका में ही तैयार कर देती हूं
भोजन।आज तो लापसी बनाऊँगी। तुम प्रधान जो बन गये हों। और तू प्रधान की
परिचारिका हो गई ना ? मालती रसोईघर में पहुंच गई।
विमलशय ने कपड़ें बदल लिये और पलंग में लेट गया।राजा राज्यसभा और बेनातट के
नगरजन उसकी स्मृतिपट पर उभरने लगे। उसने राजा के दिल मे स्नेह का सागर उफनता
पाया। राज्यसभा में कलाकारों की, विद्वानो की, पराकमियो की, कद्रदानी देखी।
प्रजा में सरलता, गुणग्राहकता, और प्रेमप्यासी आंखे देखी। साथ ही साथ गरीबी भी
देखी। उसका अंतरमन बोल उठा :पहले में प्रजा की गरीबी दूर करूँगा। इस नगर में
एक भी आदमी बेघर नही रहना चाहिए। कोई भी नंगा और भूखा प्यासा नही रहना चाहिए
एक राज्य अधिकारी के रूप में मेरा पहला कर्तव्य यही होगा। चुंगी की तमाम
पैदाइश में प्रजा की सुख- शांति एवं बेनेतट की उन्नति के लिये खर्च करूँगा।उस
धन में से एक पैसा भी मुझे अपने लिये नही चाहिए।
आगे अगली पोस्ट मे…