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राजमहल में – भाग 3

महाराजा आपको याद कर रहे है। आपका बनाया हुआ दिव्य जादूई पंखा कमल श्रेष्ठी ने
महाराजा को भेंट किया है। वह देखकर, उसका प्रभाव जानकर, उस पंखे की रचना करने
वाले महान कलाकार के दर्शन करने के लिए महाराजा आतुर है।आपको लिवाने के लिए
हमे पालकी लेकर भेजा है। में भी कलाकार की कला का मूल्यांकन करने वाले बेनातट
नगर के राजेश्वर के दर्शन करके आनंदित होऊँगा।आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करे। मै
आधी घटिका में ही तैयार होकर आपके साथ चलता हूं। राजपुरुष मकान के बाहर आकर
बैठे। मालती के आनंद राजपुरुषों का उचित आतिथ्य किया। मालती के आनंद की सीमा
नही थी। वह भी अपने योग्य कपड़े पहनकर विमलशय के साथ राजसभा मे जाने के लिए
तैयार हो गयी थीं। विमलशय ने उत्तम वस्त्रालंकार धारण किये।उसने बाहर आकर
राजपुरुषों से कहा : मै पैदल चलकर ही जाऊँगा। पर, हम यह पालकी साथ लाये है
आपके लिये। यह तो महाराजा की उदारता है। मेरे जैसे अनजान परदेशी राजकुमार पर
महान कृपा की है। पर मै उसमे नही बैठुगा। मै पैदल ही चलूँगा। इस बहाने बेनतट
नगर की भव्यता देखने का मौका मिलेगा। आप तनिक भी चिंता न करे। पर महाराजा हम
पर नाराज होंगे। नही होंगे। मै उनसे निवेदन कर दूँगा। विमलशय की शिष्ट और
मिष्ट वाणी सुनकर के राजपुरुष ख़ुश हो उठे। विमलशय को साथ लेकर वे राजसभा में
आये।

आगे अगली पोस्ट मे…

राजमहल में – भाग 2
September 28, 2017
राजमहल में – भाग 4
September 28, 2017

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