विमलशय ने दूसरे दिन नित्यक्रम से निव्रत होकर मालती को अपने पास बुलायी
और उसे पच्चीस हजार रुपये भेंट दे दिये। उस वक्त मालती को विमलयक्ष मे भगवान
का दर्शन हो गया। वह भावविभोर होती हुई विमलयक्ष के चरणों मे लेट गयी। ओ
परदेशी राजकुमार! क्या तू कर्ण का अवतार है ? तूने तो मेरे जनम जनम की
दरिद्रता दूर कर दी। बोल, मै तेरा क्या प्रिय करु ? तू जो कहे सो करने को
तैयार हूँ। विमलयक्ष हँस पड़ा। उसने कहा: मालती भूख सता रही है तेरे केसरिये
दूध की खुशबू बता रही है कि मालती भेपति हुई दौड़ी ओर घर मे जाकर मधुर दूध का
प्याला भर लायी। विमलयक्ष ने दूध पी लिया।प्याला मालती को देते हुए कहा :
मालती मान या मत ज्ञान, आज कोई न कोई अच्छी घटना होनी चाहिए। आज मेरा मन
अव्यक्त आंनद से छलकने लगा है। तो क्या मुझे आज कोई जादुई पवन पावड़ी देकर
बेचने के लिए चौराहे पर भेजने का इरादा है क्या ? मालती ने विमलशय के सामने
देखते हुए मुस्कान बिखेरी। नही बाबा नही अब मालती को चौराहे पर थोड़े ही भेजने
की है ? अब में उसे अपने राजसभा में ले जाऊँगा। आयेगी न मालती, मेरे साथ ?
अरे, राजसभा में क्या ? तुम कहो तो इंद्रसभा में भी चली आऊँ तुम्हारे साथ।
फिर ये तेरा आदमी क्या करेगा बेचारा ? ये पच्चीस हजार रुपये मिले है ना ?
खायेगा, पियेगा ओर मौज मनाएगा।
दोनो खिलखिला हँस दिये। मालती की निगाह बगीचे के द्वार पर गिरी ओर वह तपाक से
खड़ी हो गयी उसने घूरकर देखा और बोल उठी : कुमार, यह क्या ? राज्य की पालकी
लेकर राजा के आदमी बगीचे में आ रहे है। देखो तो सही तुम। मालती ने विमलयश को
इशारे से दरवाजे की तरफ देखने को कहा। अरे ये लोग तो इधर आ रहे है। मालती
दौड़ती हुई सामने गयी। मुखिया से आदमी ने मालती के पास आकर पूछा :मालती तेरे
वहाँ एक परदेशी राजकुमार आया है ना ? हा कहा है।मेरे वहीं पर है। मालती राज्य
के आदमियों को लेकर अपने मकान में आयी। राजपुरुषों ने प्रणाम करके कहा: परदेशी
राजकुमार, हमारे महाराजा का एक संदेश आपके लिये हम लेकर आये हैं। कहिये
महाराजा के क्या आज्ञा है मेरे लिये ?
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