‘पर देख ! विमलयश ने कहा-
पंखे की विशेषता पहले से सबको बता मत देना । कोई योग्य ग्राहक पूछे तो उसे
बताना!’ पंखा लेकर मालती चली आयी नगर के मुख्य चौराहे पर । वहाँ पहुँचकर अच्छी
जगह देख कर खड़ी रही और फ़िर बोलने लगी :
‘पंखा ले लो भाई पंखा ! सवा लाख रुपये का पंखा ! लेंना है किसी को ?’
लोगो का टोला इकट्ठा होता है । कोई हँसता है ।कोई मालती को पागल समझ कर चल
देते है ….।
‘पंखे की कीमत क्या कभी सवा लाख देखी सुनी भी है भाई ?’ लॉग आपस मे कानाफुसी
करते है । पर कोई पूछने की हिम्मत नही करता है की अरी मालती ,तेरे पंखे मे
ऐसा क्या जादू भरा है की तू इसकी कीमत सवा लाख बता रही है ।’ पहला प्रहर बीता
, पर पंखा लेने कोई आगे नही आया । दूसरा प्रहर गुजर गया, पंखे का कोई खरीददार
नही मिला ।
तीसरा प्रहर ढल गया…. कोई व्यक्ति नही आता है पंखा खरीदने को । मालती मायूस
होने लगी । पर चौथे प्रहर के ढलते-ढलते एक सेठ उधर से गुजरे । उन्हींने यह
तमाशा देखा ।उसने मालती से आकर पूछा ?’अरी मालिन, यह तो बता इस पंखे मे ऐसी
क्या विशेषता है जो तो इसका सवा लाख माँग रही है ?’मालती को लगा: यह कोई
सचमुच खरीदने वाला लगता है ।उसने कहाँ :
सेठ यह पंखा जादुई है ।दाहज्वर से पीडित व्यक्ति का दाहज्वर मिटा दे वेसा जादू
है इसमे ।’
क्या बात कर रही है ? तो चल मेरे साथ मेरी हवेली पर !मेरा लाडला बेटा कई दिनों
से दाहज्वर से तड़पता है । उसका दाहज्वर यदि मिट गया तो मै तुझे सवा लाख रुपये
रोकड़े गिन दूंगा ।’
मालती पंखा लेकर सेठ के साथ चल दी उसकी हवेली पर । सेठ ने पंखा लेकर अपने
बीमार बेटे पर हवा डाली….। ज्यो-ज्यो पंखे की हवा फैलने लगी ….सेठ का बेटा
ज्वर से मुक्त होने लगा । उसकी आँखों मे नींद आने लगी । सेठ हर्ष से पुलकित हो
उठे !
‘मालिन, तेरा पंखा सच्चा !पंखा मेरा और ले यह सवा लाख रुपये तेरे !’सेठ ने सवा
लाख रुपए राकेडे गिन दिए ।रुपए लेकर आनन -फानन में मालती अपने घर पर दौड़ी आई
।उसका आनंद उछल रहा था……. विमलयश के कमरे में आ कर उनसे सवा लाख रुपये
विमलयश के सामने रख दिये और खुद भी बैठ गई नीचे ।
‘बिक गया पंखा सवा लाख में मेरे राजकुमार । क्या पंखा बनाया है तुमने? तुमतो
बड़े अजीब कलाकार हो …… राजकुमार क्या कहने तुमारे सवा लाख का पंखा बाप रे
…. और फिर बिक भी गया
मालती एक ही सांस में बोल रही थी ….. हाँफ रही थी ….विमलयश चेहरे पे
मुस्कान बिखेरे उसे देख रहा था ।