एक रात को विमलयश के दिमाग मे एक विचार कौंधा….।
अमरकुमार का मिलन तो इसी नगर मे होने वाला है, परंतु वो मिले इस से पहले मुझे
मेरे वचन को सिध्द कर देना चहिये । जब उन्होने ‘सात कौड़ी मे राज्य लेंना !’
वेसा लिखकर मेर त्याग किया है । बचपन मे, नादानी मे, मेरे कहे गये शब्द
उन्होने वापस मेरे पर फेंके है, तो मुझे भी उनकी चुनौती स्वीकार कर अपने
शब्दो को साकार बना देना चहिये । इसके बाद उनका मिलना हो तब ही मे स्वभाव से
उनके साथ शेष जीवन गुजार सकुगी, वर्ना अपनी आदत से मजबूर अमरकुमार मुझे ताना
कसने से चूकेंगे नही इसलिये कूछ तरकीब सौचनी होगी…..। सर पर हाथ रखकर बेठ्ने
से क्या होगा ? दिन गुजर जायेंगे पर बात बनेगी नही !’
विमलयश ने मन ही मन यह योजना बना ली ।उस योजना के मुताबिक उसने पहला काम मालती
को ही सौंपा ।मालती को बुला कर कहाँ :
‘मालती यह पंखा मे तुम्हे देता हूँ …. तुझे बाजार मे जाकर इस पंखे को सवा
लाख मे बेचना है !’
मलती ने पंखा हाथ मे लेकर ध्यानपूर्वक उसको देखा और पूछा :
इस पंखे मे ऐसी क्या विशेषता है की कोई व्यक्ति इसे सवा लाख रुपये मे खरीदने
को तैयार होगा?
‘विशेषता ? मालती ये पंखा जादुई है । इस पंखे की हवा से चाहे जेसा भी ज्वर
हो…. बुखार ho…. शांत हो जाता है ।
‘तब तो कोई न कोई ग्राहक शायद मिल जायेगा ।
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