‘मालती इस नगर के राजा का नाम क्या है ?’
गुणपाल ।’
उसके कितने बेटे है ?’
‘केवल एक ही बेटी है…..। बेटा है नही ! बेटी बड़ी प्यारी और सलोनी है !’
क्या नाम है उसका ?’
‘गुणमंजरी ! ‘
अच्छा …अरे मालती …. तेरा आदमी तो दिखा ही नही ! ‘
‘वो शाम को आयेगा….बाहर गय हुआ है ।’ ‘तुम दोनो की कमाई कितनी है ?’
गुजरा हो जाता है… महराजा की क्रपा से यह मकान रहने को मिला है…. । इस
बगीचे को सम्भालते है !’
‘बगीचा तो बहूत ढंग से सम्भला है…. फ़ूलॊ के साथ तरह तरह के फल भी होते है
क्या ?’
क्यों नही ? करीबन दस बारह प्रकार के फल भी होते है ।’
तब तो रोजाना अपन को फलाहार मिलेगा ।’
तुम जो चाहौगे वह आहार मिल जयेगा ! मलती का स्वभाव विमलयश को भा गया ।
सूर्यास्त के पहले ही भोजन वगेरह से निपटकर विमलयश ने श्री नवकर महामँत्र का
जाप कर लिया ।इतने मे तो माली बाहर गाँव से आ गया । मलती ने अपने पति को
विमलयश के आगमन की बात कही । विमलयश की उदारता-शालीनता की जी भर के प्रशंसा की
। माली भी प्रसन्न हो उठा । विमलयश की रात वेसे तो शांति से बीती, पर वह घंटों
तक सूरसंगीत नगर की स्म्रतियों मे डूबा रहा । नदी-श्वर द्वीप की स्मॄति यात्रा
भी की । अमरकुमार के विचार भी आ गये । वेसे भी फुरसत का समय बीती हुई बातो का
याद करने का ही होता है !’
दूसरे दिन सवेरे नित्यकर्म से निवृत होकर विमलयश ने मालती को पचीस्स मोहरे
देते हुए कहा :
‘मालती, इन पैसो से बाजार मे जा कर अच्छे बढ़िया बर्तन वगेरह खरीद लाना ।
अच्छे बर्तन तो घर की शोभा बढाते है !’
मालती नाच उठीं । बाजर जा कर अच्छे बर्तन खरीद लायी । विमलयश ने मलती के घर को
पूरा ही बदल दिया । मालती ने विमलयश की सेव मे कोई कमी नही रखी । कुछ दिनो मे
तो उसने विमलयश को बेनातट नगर से पूरा परिचित करवा दिया ।
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