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विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 8

‘मेरे प्यारे भैया …..मेरी एक बात सुनो ….तुम तो मेरे मन मे बस गए हो
….इस देह में जब तक प्राण है …. तब तक तो मै तुम्हें नही भुला पाउंगी …
तुम्हारे तो मेरे पर अनंत अनंत उपकार है …..। तुम्हारे उपकारों के कैसे
भुलाऊँ ?मेरे वीर मेरे भैया दिन-रात ,आठो प्रहर तुम्हारा नाम मेरे होंठो पर
रहेगा….. तुम्हारी याद मेरे ह्रदय में रहेगी …..।
मेरी प्यारी भाभियों को प्रेम देना ।उन प्यारी प्यारी भाभियो से कहना ….
‘तुम्हारे बिना मेरी बहन बिन पानी के मछली की भांति तड़पती रहेगी… तरसती
रहेगी । तुम्हारे प्यार के बिना पता नही मै कैसे जी पाउंगी ? ‘मेरे भाई ….
नौ -नौ महीने का एक सुंदर सलौना सुखभरा सपना बीत गया । सारे अरमान जलकर राख हो
गए। अब क्या ? तुम्हारी अनुकंपा… तुम्हारा निर्विकार प्रेम ….. तुम्हारा
महैतुक वात्सल्य …..तुम्हारी वचन निष्ठा ….. तुम्हारा अद्भुत आत्मसंयम इन
सारे गुणों को याद कर कर के आंसू बहती रहूंगी ।’
पर मेरे वीर …. मेरे भैया …. तुमतो बड़े विद्याधर हो । क्या साल में एकाध
बार भी इस दुखियारी बहन के पास नही आओगे ? मै तो बिना पंख की पंखिन हुँ ……
कैसे आउंगी तुम्हारे पास ? तुम्हारे पास तो अवकाश यान है तुम जरूर चम्पा नगरी
में पधारना । मेरी प्यारी भाभी को साथ लेकर जरूर आना । आओगे ना भैया ?? मै
रोज़ाना शाम को हमारी हवेली की छत पर बैठी तुम्हारा इंतजार करूँगी …….
ओ मेरे वीर तू मुझे दर्शन देना ….. तू चांद बनकर चले आना । तू बदल बन कर आ
जाना …… तू किसी भी रूप में आना तू किसी भी भेष में आना मेरे भैया ….भूल
नही जाना। अपनी इस अभागिन बहन को । नही भूलोगे ना मेरे वीर ? बोलोना …..कुछ
तो बोल मेरे भाई ।’
सुरसुन्दरी रत्नजटी के कदमों में लौट गई । रत्नजटी ने उसको खड़ी की….. उसके
माथे पे अपने दोनों हाथ रखे । उसकी आँखें बरसाती नदी की भांति बह रही थी उसके
गरम गरम आँसू सुरसुन्दरी के माथे को अभिषेक करने लगे ।
यकायक उसने अपने आप को सयंमित किया। हाथ जोड़ कर सुरसुन्दरी को नमन किया और
तीव्र वेग से अपने विमान में जक बैठा ।
शीघ्र गति से विमान को आकाश में ऊपर उठाया….. और विमान बादलो के पहलू में
सिमटा आँखों से ओझल हो गया ।

विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 7
September 27, 2017
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September 27, 2017

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