तो क्या आज ही चली जाऊगी क्या ? अरे… मेरी इन प्यारी प्यारी भाभियो को
छोड़कर जाने को दिल ही नही करता है। जी करता है… यही रह जाऊँ… ससुराल जाना
ही नही है।
नही, दीदी, नही ससुराल तो जान ही चाहिए। यह तो तुम्हारे भाई ने हमसे कहा कि
बहन अब कुछ ही दिन रहने वाली है.. जितना प्यार-दुलार करना हो कर लेना। इसलिए
हमारे तो प्राण सुख गये। तीसरी रानी विधुतप्रभा बोली।
दीदी, …. देखो हम तो तुम्हारे भैया से कुछ नही कह सकते। वे जो करते होंगे वह
उचित ही होगा। हमें उन पर पूरा भरोसा है, पर दीदी तुम उनसे कहना कि वे जल्दी
ना करे। कहोगी ना? कितनी प्यारी दीदी हो तुम।
मै तो यहाँ से जाने का नाम भी लेने वाली नहीं। जाये मेरी बलारात।
नही बाबा ! ऐसा कैसे हो सकता है ? ससुराल तो जाना ही होता है। औरत तो अपने
ससुराल में ही शोभा देती है यह तो भला हमारा लगाव तुमसे इतना ज्यादा हो गया है
कि तुम्हारे अलगाव की कल्पना भी दुःखी दुःखी कर डालती है हमे ! तुम्हारे बिना
एक पल भी जीना गवारा नही होगा।
रविप्रभा बोल उठी :
बहन मै भी तुम्हारी जुदाई की कल्पना से दुःखी हूँ, पर इस संसार में कोई भी
मिलन शाश्वत कहा है ? सयोंग के बाद ही है वियोग तो आता। यो सोचकर अपने मन को
मनाने की की कोशिश करती हूँ। इस जीवन मे तुम्हे कभी नही भूला पायेंगे हम।
‘तुम्हारे भाई देखो न….एक तरफ तुम्हे छोड़ के आने की बात कर रहे है और
दूसरी तरफ खुद कितना रो रहे है? हमे बात करते करते …’चारो रानियां फिर रो
दी। सुरसुन्दरी भी सिसकने लगी।
हमे यही चिंता हो रही है कि वे तुम्हे छोड़कर आने के बाद रोया ही
करेंगे…उनका दिल मानने का नही। उनका दुःख हम कैसे तो देख पायेंगे ?’पूरा
कमरा उदासी की ऊमस से भर उठा।
आशवासन का कोई मतलब नही था।
वास्तविकता को स्वीकारे बगैर कहां कोई चारा था ?
स्नेहभरे … प्रेम से पागल हुए दिल ने… वेदना… दुःख… पीड़ा … विषाद
ही लिखे होते है। स्नेह ,सहवास चाहता है… और सहवास होता भी है तो पल दो पल
का ! वियोग की चटानो पर सर पटक पटक कर स्नेह के आँसू बहाता है।
प्रीत की पीड़ा को कौंन जान पाता है ?
स्नेह में छेह रहता ही है … लगाव के समांतर हो अलगाव चलता है। इएलिए तो
सदियो से कहते है गुणीजन:
‘प्रीत न करियो कोई। ‘