चोपड़ खेल रही सुरसुन्दरी का दिल भारी भारी होने लगा। उसका मन किसी अव्यक्त
पीड़ा से थरथराने लगा। पासे गलत गिरने लगे…. रानियो ने सुरसुन्दरी के सामने
देखा तो वे चौक उठी :
दीदी….,तुम्हारे चेहरे पर इतना दर्द क्यो जम रहा है ?’ ‘कुछ समझ मे नही आता
है… मुझे बेचेनी है…. कुछ अच्छा नही लग रहा है !’
‘तो अपन खेल बन्द कर दे…. तुम्हे सुख हो वैसा करे…. दीदी…! ! ! ‘
रानियो ने खेल सिमटा दिया । चारो रानिया चिंता से व्याकुल हो उठी !
‘बहन, बगीचे में घूमने जाना है ? ‘
‘दीदी , कुछ पीओगी ? ‘
‘दीदी, कुछ देर सो जाना है….?
‘ दीदी….,सिर दबा दु….?’
सुरसुन्दरी की बेचैनी ने चारों रानियो को उद्धिग्न बना दिया डाला…
सुरसुन्दरी ने चारों रानियो के सामने देखा….
‘ कहो न दीदी… क्या बात है ?’ रानियों की आंखे भर आयी । ‘मुझे मेरे भाई के
पास जाना है…. जल्दी ले चलो मुझे वहां, वे मुझे याद कर रहे है….
सुरसुन्दरी खड़ी हो गयी….चारो रानियो के साथ स्वरा से नीचे उतरी….
रत्नजट्टी के शयनकक्ष का दरवाजा बंद था….द्वार जे पास आकर सुरसुन्दरी खड़ी रह
गयी…. वो अपने दोनों हाथ दरवाजे पर रखती हुई चीख पड़ी… भाई… दरवाजा
खोलों…’ उसकी आँखों मे सावन की झड़ी लग गयी । चारो रानिया फफक उठी….
सुरसुन्दरी को घेर कर बैठ गयी। रत्नजट्टी ने कुछ स्वस्थ होकर दरवाजा खोला।
सुरसुन्दरी तुरंत खड़ी हो गयी… उसने रत्नजट्टी के कंधों पर अपने हाथ रखते हुए
आँखों में आंसू भर कर उसकी आँखों मे झाँका । वो गुमसुम सी खड़ी रह गयी ।
‘क्या तुम मुझे याद कर रहे थे भैया ?’
‘हाँ…मेरी बहन….पल पल याद कर रहा हुँ…’रत्नजट्टी की बनावटी स्वस्थता
सूरसुन्दरी के बहते आँसुओ में बह गयी…. उसकी लाल लाल सूजी हुई आंखों में से
आँसू गिरने लगे। रानिया भी दुखी हो उठी….
नही , भैया नही…तुम्हे मेरी कसम है….यदि आंसू बहाये तो ।’
ओर अब क्या बचेगा जिंदगी में, बहन ?’
‘नही, तुम रोओ मत ।’
बहन !!!!’
भाई !!!!’