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प्रीत किये दुःख होय – भाग 4

एक दिन मध्याह्र के समय चारों रानियाँ सुरसुन्दरी के साथ चोप खेल रही थीं
।खेल काफी जम गया था । समय एवं परिस्थितियों के इस पार जाकर सब जैसे चोपड़ के
पासो में खो गए हो वैसा समा बंध गया था ।
अचानक रत्नजटी वहां जा पहुँचा । कमरे के दरवाजे पर ही वह खड़ा रह गया ठगा-ठगा
सा ! रानियों ने या सुरसुन्दरी ने किसी ने भी रत्नजटी को दिखा नही की उसकी आहट
सुनी नही ! पर रत्नजटी अपलक निहारता रहा सुरसुन्दरी को ।
रत्नजट्टी को प्रेमभरी छाया में और चार-चार रानियों के प्यार भरे सहवास में
सुरसुन्दरी निर्भय-निश्चित होकर जी रही थी । ग्यारह ग्यारह बरसो की भागदौड़ की
थकान उत्तर चुकी थी । शरीर की गलानि दूर हो गयी थी। दिव्य कांति से पूरी काया
दमक रही थी । चेहरे पर चमक निखर रही थी। गदराया हुआ बदन एवं चेहरे का खिला
खिला लावण्य अपसरा को भी शरमाए वैसा महक रहा था ।
रत्नजटी आज पहली बार सुरसुन्दरी के शारारिक सौन्दर्य ,रूप लावण्य के बारे में
सोचने लगा था ।वह तुरंत नीचे उतर कर अपने कमरे में आ गया । शयनखंड के पश्चिमी
वातायन के पास जाकर खड़ा रहा । उसका भीतरी मैन पुकार रहा था ! ‘अब बहन को
बेनातट नगर में पहुँचा दे….उसी में तेरा और उसका हित है ।’
‘मै उसे कैसे पहुँचा दु ? उसके बिना मै रह नही सकता….उसके बिना मेरा जीवन
शुष्क -नीरस एवं वीरान हो जाएगा !’
‘ यदि नही पहुचाया….. और तेरे मन मे पाप जग गया….तो ? उस धनंजय एवं
फानहांन की तू नई आवर्ती बन गया तो ?
नही…..नही….. ऐसा तो कभी नही हो सकता ! ऐसा यह रत्नजट्टी किसी हालत में
नही करेगा ! मै एक महान मुनि पिता का पुत्र हुँ… वह मेरी बहन है….प्यारी
बहन है….मै भाई हुँ….वो मेरी बहन ही रहेगी ….
‘रत्नजट्टी, छह महीने में एक भी दिन या एक बार उसके साथ तुझे एकांत नही मिला
है इसलिए तू उसके प्रति भगिनी का भाव रख पाया है….अचानक कभी किसी पाप कर्म
का उदय आया ..एकांत मिल गया….तब तू अपने आप पर काबू नही रख पाया तो ?
मुझे अपने आप पर पूरा भरोसा है ! उस विशवास को में गवाना नही चाहता ! एकांत
में मिले या अकेले में वो मेरी बहन ही रहेगी । उसके लिए मै भाई ही रहूँगा। मै
उसे यही रखूंगा ….मेरे परिवार के मानसरोवर में वह हंसी बनकर आयी है…. उसके
बिना मेरा सरोवर सुना-सुना हो जाएगा ! क्या रौनक रहेगी मेरे परिवार में ?

आगे अगली पोस्ट मे…

प्रीत किये दुःख होय – भाग 3
September 1, 2017
प्रीत किये दुःख होय – भाग 5
September 1, 2017

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