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भीतर का श्रंगार – भाग 9

चौथे प्रहर का प्रारंभ हुवा और
दरवाजा बजा : ठक् ठक् …. महामंत्री चमका… कौन होगा ?
श्रीमती दरवाजे तक जा कर आई और कहा :
महाराज पधारे है !’
महाराजा ? यहाँ पर ?अभी ? मै मर जाऊंगा ! अब कहा जाऊ? क्या करूँ? ऐसा कर तू
मुझे छुपने की जगह बता दे …. मै तेरे पैरो गिरता हु ! कुछ भी कर !
श्रीमती ने महामंत्री को पिटारे के तीसरे खाने में उतारा और बंध कर के ताला
लगा दिया !
दरवाजा खुला और महाराजा हवेली में प्रविष्ट हुवे ।श्रीमती ने स्वागत किया।
राजा ने मूल्यवान अलंकार भेंट किये श्रीमती को। श्रीमती ने अलंकार लेकर
तिजोरी में रख दिये ।महाराज की सेवा भक्ति होने लगी। दो घड़ी का समय बिता न
बिता …. की हवेली के बाहर कोई औरत दहाड़कर रोटी हुई आई। जोर जोर से दरवाजा
खटखटा ने लगी ….ओह श्रीमती दरवाजा खोल …..बहुत बुरे समाचार आये है
…..तेरा पति परदेश में ही मर गया है …..जल्दी दरवाजा खोल ,श्रीमती !’
श्रीमती सटाक ….जमीन पक़र गीर गई ….और दहाड़ मार मार कर रोने लगी…. राजा
गबराया…. उसने कहा पहले तू मुझे कहीं छुपा दे… फिर दरवाजा खोलना….
श्रीमती ने पिटारे के चौथे खाने में राजा को बंद किया और ताला लगा दिया ! दासी
ने कहा बस अब अपना काम निपट गया …… अब अपन दो घड़ी विश्राम कर लें ,सुबह की
बात सुबह में !
दोनो सो गई ।
सुबह सुबह में पूरे नगर में बात फेल गई कि श्रीदत्त श्रेष्ठी परदेश में मार गए
है …. राजा के राज्य में नियम था कि नि:संतान व्यक्ति मार जाता तो उसकी
संपत्ति राजा ले लेता ।
राजपुरुष राजमहल में गए । पर राजमहल में महाराजा नही थे । महारानी ने कहा
:श्रीदत्त श्रेष्ठी नि:संतान मर गए हैं …..उनकी संपत्ति मंगवा लेनी चाहिए
।रानी ने राजा की तापस करवाई ….पर राजा मिलेगा कहाँ से ? सेनापति और पुरोहित
के भी कोई समाचार नही मिले। राजपुरुषों को बहुत आश्चर्य हुवा ।रानी ने कहा
शायद किसी अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य के लिए किसी गुप्त जगह पर गए हैं… तुम
जाओ और श्रीदत्त सेठ की सारी संपत्ति मेरे पास ले आओ !

आगे अगली पोस्ट मे…

भीतर का श्रंगार – भाग 8
September 1, 2017
भीतर का श्रंगार – भाग 10
September 1, 2017

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