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भीतर का श्रंगार – भाग 7

श्रीमती पहले तो चक्कर खा गयी… उसने महामंत्री को बहुत समझाया… पर
महामंत्री उसके आगे प्रेम की भीख मांगने लगा… कुछ सोचकर उसने महामंत्री को
रात के तीसरे प्रहर मे अपनी हवेली पर आने का कहा। महामंत्री तो खुशी से नाचने
लगा।
श्रीमती का मन बिलख रहा था .. जहाँ सहायता को जाती थी… वही नई मुसीबत उसे
घेर रही थी… आखिर वो थककर राजा के पास जा पहुंची और हाथ जोड़कर राजा से
बोली..’ महाराजा महामंत्री मेरे पीछे पड़ गया है-वो मेरे घर में आने का कह रहा
है…आप उसे रोकिये ..मेरी रक्षा करे
राजा श्रीपति खुद ही श्रीमती को देखकर पागल हुआ जा रहा था । अच्छा मौका
देखकर उसने श्रीमती से कहा :
‘तू निश्चित रहना । महामंत्री को मै शूली पर चढ़ा दूँगा…. पर मै तेरे रूप पर
आशिक हुआ हूं….तू मुझे मिलनी चाहिए…तू चाहेगी तो मै तुझे मेरी रानी बना
दूँगा…या फिर एक बार तू मुझे अपनी हवेली में बुला ले….।’
श्रीमती को पल भर लगा कि उसके पैरों तले से धरती खिसक रही है…फिर भी मन मसोस
कर उसने राजा को समझाने की कोशिश की। पर राजा माना ही नही तब श्रीमति ने कहा:
ठीक है—- आप आज रात को चौथे प्रहर के प्रारम्भ में मेरी हवेली पर पधारना ।’
श्रीमती अपनी हवेली पर आयी…. उसने मन ही मन पुरोहित को, सेनापति को,
महामंत्री की और राजा को बराबर पाठ सीखने का निर्णय किया। इसके लिए उसने एक
सुंदर की योजना भी बना डाली ।
वह अपनी पड़ोसन के पास गयी और उसे सौ सोना मुहरे देकर कहा : बहन…तू मेरा एक
काम करेगी ? पड़ोसन ने कहा :’एक क्या दो काम कर दूंगी !’
‘तो सुन…आज रात को जब चार घड़ी बाकी रहे तब तू आकर मेरी हवेली का दरवाजे
खटखटाना… और ज़ोरज़ोर से रोना… कलपना… दरवाजा पीटपीट कर खुलवाना और मुझे
कहना की ‘ले पढ़ यह पत्र … तेरा पति परदेश में मर गया है ।’ बस, फिर तू चली
जाना । बोल करेगी न इतना काम ?
‘पड़ोसन ने हामी भर ली ।
श्रीमती ने घर मे से एक बहुत बड़ा पुराना पिटारा खोज निकाला। उस पिटारे में चार
बड़े बड़े खाने थे ।हर एक दरवाजे के खाने का दरवाजा अलग -अलग था । पिटारे को
परिचारिका के पास से खिसकाव कर अपने शयनखंड में रखवा दिया । परिचारिका से कहा
: देख सुन ….शाम को पुरोहित यह आएगा ….उसे आदर सत्कार के साथ मेरे शयनखंड
में ले आना ,, फिर मै तुम्हें जैसे आज्ञा करू वैसे वैसे करती रहना ….

आगे अगली पोस्ट मे…

भीतर का श्रंगार – भाग 6
September 1, 2017
भीतर का श्रंगार – भाग 8
September 1, 2017

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