Archivers

राज को राज ही रहने दो – भाग 3

रतनजटी ने कहानी शुरू की :
लीलावती नाम की नगरी थी।
राजा का नाम था मुकुन्द एवं रानी का नाम था सुशीला। एक दिन राजा मुकुंद अपने
राज पुरुषों के साथ जंगल में सेर हेतु गया था। जब वो वापस लौटा तो रास्ते मे
नगर के दरवाजे पर एक कुबड़े आदमी को नाचते गाते हुए देखा। राजा उसे अपने महल मे
ले गया। अलग अलग तरह की चेष्टाए एवं मुँह चिढ़ाना वगैरह करके वो कुबड़ा राजा
-रानी का मनोरंजन करने लगा। राज-सभा मे भी वो आता और रानीवास में भी बेधड़क चला
जाता। उसे कहीं भी जाने की, घूमने की इजाजत मिल गयी थी। एक दिन महामंत्री
मतिसार गुप्त महामंत्र करने के लिये राजा के पास आये राजा के पास कुबड़े को
बैठा हुआ देखकर महामंत्री ने कहा : ‘ महाराजा, गुप्त खंड की बाते बाहर के
व्यक्ति के कानों पर नही पड़नी चाहिए। गुप्त बाते चार कानो तक सीमित रहे, यही
अच्छा है, वर्ना छह कानो में बात फैलने से कभी मुश्किल पैदा हो सकती हैं। ‘यह
कुबड़ा तो अपना अत्यंत विश्वनीय है उसके कान पर पड़ी बात गुप्त ही रहेगी ‘ हो
सकता है गुप्त रहे पर कभी कभार ‘ चिंता न करे ‘राजा ने कुबड़े को दुर नही किया।
महामंत्री मन मसोस कर रह गये ।उन्होंने इधर उधर की गपशप करके बिदा ली
एक दिन एक योगी पुरूष राजसभा में आया।वह सिद्ध मांत्रिक था। राजा की सेवा
भक्ति से प्रसन्न होकर उसने राजा को ‘परकाय प्रवेश’ की विद्या दी। मंत्र देकर
वह मांत्रिक वहा से चला गया। राजा जब मंत्र सीख रहा था उस समय वह कुबड़ा भी वही
पर बैठा हुआ था। उसने योगी के शब्द सुने थे। अब जब राजा वह रोजाना मंत्रजाप
बोलकर करता है..तो उस कुबड़े ने भी वह मंत्र सुनकर याद कर लिया। राजा को इस
बात का ध्यान नही रहा..”उसे उस कुबड़े पर कोई शंका या संदेह तो था ही नही।

आगे अगली पोस्ट मे…

राज को राज ही रहने दो – भाग 2
August 24, 2017
राज को राज ही रहने दो – भाग 4
August 24, 2017

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers