असहाय रूपवती यौवना ।निराधार लावण्यमयी ललना।
शायद ही किसी विरले आदमी की आँखे उस योवना में भगिनी का निर्मल दर्शन कर सकती है। कोई महापुरुष ही उस लालना से जननी मातृभाव के दर्शन कर सकते है । उसे सहायक बनते है। उसका आधार बनते है ।राजा मकरध्वज की विकारी आँखे सुरसुन्दरी के देह पर बरफ पर फिसलती बारिश की तरह फिसल रही सुरसुन्दरी के नयन निमीलित है ।अन्नदाता हम लोग आपके लिए एक बढ़िया उपहार के तोर पर एक सुन्दरी को ले आये है। धीवरो के सरदार ने राजा को नमस्कार करके कहा। वाह! क्या लाजवाब भेट तुम लोग लाये हो मेरे लिये जाओ तुम सबको एक एक हजार सुवर्ण मुहरें भेट दी जायेगी।
राजा ने अपने कोषाध्यक्ष से कहा ।कोषाध्यक्ष ने तुरन्त हर एक धीवर को एक एक हजार सुवर्ण मुहरे देकर उन्हें बीदा किया। धीवर लोग खुश खुश होकर नाचते कूदते हुए चल दीये। राजा सुरसुन्दरी को लेकर राजमहल में आया। परीचारिका को बुलाकर सुरसुन्दरी को स्नान वगेरह करवाकर सुन्दर वस्त्र व् कीमती गहनों से उसे सजाने का आदेश दिया।सुरसुन्दरी ने मोन रहकर स्नानगृह में जाकर स्नान कर लिया। परिचारिका के दिये गये सुन्दर वस्त्र उसने चुपचाप पहन लीये ।अलंकार नहीं पहनती ।परिचारिका ने आग्रह किया पर सुरसुन्दरी ने मना किया। परिचारिका सुरसुंदरी को लेकर राजा के पास आयी। अब इसे सबसे पहले भोजन करवा दे। इस कर इसके लिये भोजन की थाली यही पर ले आ।परिचारिका को राजा ने आज्ञा दी । परिचारिका चली गई भोजन लेने के लिये। राजा वासना का जहर आँखो में भरकर सुर सुन्दरी के देह पर छिड़कने लगा। उसकी आँखे सुरसुन्दरी का अनिध सौन्दर्य उन्माद जगा रहा था।
तेरा नाम क्या हे?।
सुरसुन्दरी ।अरे वाह ।हे भी कितनी सुन्दर।
देवो की अप्सरा तो देखि नहीं पर तेरे से ज्यादा सुन्दर तो नहीं हो सकती।
आगे अगली पोस्ट मे…