सुरसुन्दरी सरोवर में कुद गिरी |
डुबकी खाकर जेसे ही वह पानी की सतह पर आयी की एक बहुत बड़ा मगरमच्छ उसे निगल गया | बेहोश सुरसुन्दरी मगरमच्छ के पेट में बिलकुल अखंड ~ अक्षत उतर गयी |मगरमच्छ का एक भी दात उसके शारीर में लगा नहीं |
मगरमच्छ तेरता हुआ सरोवर के सामने वाले किनारे पर चला गया | शिकार मिलने की ख़ुशी में….वह खुद ही धिवरो का शिकार हो बैठा | किनारे पर धिवरो ने अपनी जाल बिछाकर तैयारी रखी थी |
किनारे पर खड़े धिवरो ने देखा की बड़ा मगरमच्छ जाल में फस गया है….वे बड़े खुश हुए | मगरमच्छ के पेट को काफी उठा हुआ देखा….’अवश्य, इस मगरमच्छ ने किसी बड़े जलचर को निगला लगता है |’
उन्होंने परस्पर बात करके मगरमच्छ को सावधानी से
चीरने का निर्णय किया | काफी जीवट से उन्होंने मगरमच्छ को चीरा | अंदर में सुरसुन्दरी को बेहोश सिथति में देखा | वे पहले तो चोक उठे | फिर बड़े सलीके से आहिस्ता ~आहिस्ता उसको बाहर निकाल कर जमीन पर सुलाया | सूखे कपडे से उसके शरीर को पोछा |
सभी धीवर सुरसुन्दरी का बेनमून सोंदर्य देखकर पागल हो उठे | उन्होंने इतना सोंदर्य सपने में भी नहीं देखा था | ‘यह स्त्री जिन्दा है…मै इसे अपनी पत्नी बनाऊगा |’ धीवरों का मुखिया मुह से लार टपकाता हुआ बोला |
‘यह नहीं हो सकता…इसे अपन सबने मिलकर निकला है, तू अकेला क्यों इसका मालिक होगा ?’ एक बूढ़े धीवर ने उसको बात काट डाला |
‘तो फिर इस औरत का करेगे क्या ?’ मुखिया झुझला उठा |
‘मुझे एक विचार आया | अपन इस औरत को अपने नगर के राजा को भेट के तोर पर दे दे तो शायद राजा अपन लोगो को बहुत बड़ा इनाम देगा….अपन उस इनाम को आपस में बाँट लेगे | क्यों ठीक है न ?’
हा….यह अच्छी बात है…महाराज को इतनी सुन्दर रानी मिल जायेगी….और अपन को रुपयों की थेली ! वाह, क्या कहना ? दोनों का काम बन जायेगा |’
‘पर पहले इस औरत को होश में तो लाओ !’ एक धीवर बोला |
मुखिया समीप के जंगल में जाकर कोई वनस्पति के पत्ते तोड़ लाया | दो हाथो में पत्तो को मसल कर उसका रस सुरसुन्दरी की नाक में बूंद बूंद करके डाला | फिर उसी रस को उसके शरीर पर घिसने लगा |
धीरे धीरे सुरसुन्दरी की बेहोशी दूर होने लगी | उसने आँखे खोली….चारों तरफ नजर फेरी….धनजान जंगली जैसे लोगो को देखकर वो चीख उठी….उसका शरीर कापंने लगा…
‘मै कहाँ हूँ…? तुम सब कौन हो ?’
‘तू सरोवर के किनारे पर है….तुझे मगरमच्छ निगल गया था | हमने उसे चिर कर तुझे जिन्दा बाहर निकाला है, अब तुझे हम हमारे राजा मकरध्वज को भेट के रूप में दे देगे | तू रानी बन जायेगी….महारानी बनेगी |’
‘नहीं….नहीं….! मुझे नहीं होना है रानी….मुझे मरने दो….’ सुरसुन्दरी सरोवर की तरफ दोडी पर धीवारो ने उसे पकड़ ली….और उसे लेकर नगर की ओर चल दिये ।