‘अरे, ओ औरत। भाग … किसी मकान में घुस जा । वर्ना मर जायेगी …. हाथी तुझे कुचल डालेगा पैरों तले । जल्दी चढ़ जा कहीं पर । ओ भली औरत …. जा… जा… जल्दी जा ?’ पर सुरसुन्दरी तो गुमसुम सी चलती ही रही राजमार्ग पर ।
इतने में उसके सामने से दौड़ते हुए आ रहे मदोन्मत्त हाथी को देखा ।
आलानास्तंभ उखेड़कर वह सड़क पर निकल आया था । शराब की दुकान तोड़ – फोड़ कर उसने शराब पी ली थी मटके में से । और फिर वह उन्मत्त हुआ पागल की भाँती दोड़ रहा था । सैनिक लोग उसे न तो बस में कर रहे थे , नहीं उसे मारने में सफल हो रहे थे ।
सुरसुन्दरी घबरा उठी । वह स्तब्ध रह गयी। मौत उसे दो कदम दूर नजर आयी … वह खड़ी रह गयी …. सड़क के बीचोबीच । हाथी आया , उसने सुरसुंदरी को सूंड में उठायी और दौड़ा समुद्र की ओर । लोगों ने बवेला मचा दिया : ‘यह दुष्ट हाथी इस बेचारी औरत को या तो पैरों तले रौंद डालेगा…या फिर समुद्र में फेंक देगा… हाये, कोई बचाओ…इस अभागिन औरत को ।’
सैनिक लोग दौड़े हाथी के पीछे …पर वे कुछ करे इसके पहले तो हाथी ने सुरसुन्दरी को ऊँचे आकाश में फेंक दिया…जैसे गुलेर में से पत्थर उछला ।
उछली हुई सुरसुन्दरी सागर में जाकर गिरी …., पर वह गिरी एक बड़े जहाज में ।
वो जहाज था दूर देश के एक यवन व्यापारी का । बेनातट नगर में वह व्यापार करने के लिये आया था । उसका नाम था फानहान ।
लोगों की चीख – चिल्लाहट सुनकर फानहान कभी का जहाज के डेक पर आकर खड़ा था । उसने अपने जहाज में गिरती एक औरत को देखा । आननफानन में वो उसके पास दौड़ गया । जहाज के नाविक और नोकर दौड़ आये।
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