नहीं नहीं , मैं ऐसा जवाब दूंगा कि उन्हें कोई संदेह हो ही नहीं । मैं कहूँगा कि यक्ष आकर सुन्दरी को उठा ले गया …. और मैं तो बड़ी मुश्किल से बचकर यहां दौड़ आया …।’
‘एक पल की देर किये बगैर जहाजों को रवाना कर दूंगा ।’ हां … यक्ष का नाम आते ही सब को मेरी बात झूठी लगने का सवाल ही पैदा नहीं होगा ।’
उसने दांत भींचकर सुरसुन्दरी के सामने देखा ।
सुरसुन्दरी कहीं जग न जाय इसकी पूरी सावधानी रखते हुए उसने अपनी जेब में से सात कोड़ी निकाली और सुरसुन्दरी की साड़ी के छोर में बांध दी गांठ लगाकर । पास में पड़ी पते की सलाखा को आंखों के काजल से रंगकर साड़ी के छोर पर लिख दिया : ‘सात कोड़ी में राज लेना ।’
एकदम धीरे से उसने सुरसुन्दरी का सर अपनी गोद में से जमीन पर रखा । सुरसुन्दरी ने करवट बदली , एक क्षए उसने आंख खोली थी पर अमरकुमार को देखकर निशिचत मन से वापस सो गयी …।
अमरकुमार पलभर के लिये तो ठिठक गया , पर उसके दिल में बदले का लावा उफ़न रहा था। वह खड़ा हुआ। उसने सुरसुन्दरी की ओर देखा … हाथ की मुट्ठियां अपने आप भींच गयी। चेहरे पर सख्ताई छलक आयी और वह दौड़ा । किनारे की ओर बेतहाशा दौड़ने लगा ।
‘शायद वो जग जायगी और मुझे किनारे की ओर दौड़ता हुआ देख लेगी तो ? वह भी दौड़ती हुई मेरे पीछे आ जायेगी ।’ अमरकुमार बार बार पीछे देखता था और दौड़ा जा रहा था।
नाविकों ने व मुनिमों ने अमरकुमार को अकेले दौड़ते हुए आता देख । उनके भीतर धुकधुकी फैल गयी । नाविक सामने गये दौड़ते हुए ।
‘क्या हो गया कुमार सेठ? सेठानी कहां है ?’
अमरकुमार जमीन पर टूट गिरा । वह हांफ रहा था … उसकी आंखों में भय था । उसने टूटे टूटे शब्दों में कहा : ‘जल्दी करो…वो यक्ष … आया … और सुन्दरी को उठा ले गया ..मैं भाग आया ….।’
‘क्या ? सेठानी को यक्ष उठा ले गया ? ओ…. बापरे । सत्यानाश । चलो , चलो , अपन जल्दी जहाज में बैठ जायं । कहीं वो दुष्ट आकर सबको न मार डाले ।’ मुख्य नाविक ने किनारे की और कदम उठाये सरपट ।
भोजन ज्यों का त्यों पड़ा रहा । सभी जल्दी जल्दी नोका में बैठकर जहाज पर पहुँच गये और तुरन्त लंगर उठाकर जहाजों को छोड़ दिया दरिया के बोच पुरे जोर से ।
आगे अगली पोस्ट मे…