‘राग ~द्वेष के अस्तित्व में भी संबंध तो टिकेगा न?’
संबध अखंड नहीं रहेगा….संसार के सभी सम्बन्ध अनित्य है |’
‘एक जनम में संबंद अखंड व अक्षुण्ण रहने की बाते शास्त्रों में भी तो आती है न? अरे, नौ नौ जन्म तक संबंध अखंड रहने के उदाहरण मेरे पास मोजूद है |’
‘वह तो मै भी जनता हुँ !’
‘तब तो अपना सम्बन्ध भी अखंड रहेगा | रहेगा न? ‘मेरी भीतरी अभीप्सा यही है , सुर ! पर इस संसार में जीवात्मा की हर चाहना सफल हो एसा हमेशा कहा होता हें !’
‘ये आप आज जाने कोई महात्मा की वाणी अच्छी लगती है न |’
‘अच्छा….चलो , जो मुझे पसंद होगा वही आप बोलोगे न ?’
‘बिलकुल ! सम्बन्ध को अखंड रखना हो तो तुम्हे भी वेसा ही बोलेने का जेसा मुझे पसंद हो !’
‘एक दुसरे की पसंदगी ~नापसंदगी को जान लेना होगा!’
‘हा….बाबा….हा ! पर अभी तो अपन को सो जाना पसंद आयेगा ! क्यों क्या इरादा है आपका ?
सुबह सुरसुन्दरी तो जल्दी जग गयी | आवश्यक कार्यो से निपटकर, शुध्द~शवेत वस्त्र धारण करके, शुद्ध जगह पर आसन बिछाकर उसने नवकार मंत्र का जाप प्रारम्भ किया |
अमरकुमार जगा| उसने सुन्दरी के सामने देखा| शवेत वस्त्र ! ध्यानस्त मुद्रा ! चहरे पर प्रशातता ! जैसे कोई योगिनी बैठी हो ,वैसी सुर सुंदरी प्रतीत हो रही थी | अमरकुमार का मन हंस उठा | सुर सुंदरी को जरा भी विक्षेप न हो इस ढग से वह खड़ा होकर खंड में से बाहर निकल गया ।
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