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माँ का दिल – भाग 4

जब सुरसुन्दरी राजमहल में पहुँची, रानी रतिसुन्दरी ने उसे अपने अंक में भर लिया । वो फफक कर रो दी । सुरसुन्दरी भी रो पड़ी। सेठानी धनवती मां-बेटी को अकेला छोड़कर भारी मन से वापस लौट आयी ।
‘बेटी , ‘रतिसुन्दरी का स्वर काँप रहा था ‘ , मैं तुझे ऐसा तो कहूँ भी कैसे कि तू परदेश मत जा । पत्नी को तो पति की छाया बनकर ही जीना चाहिए । उसमें ही उसका सुख छुपा हुआ है । पर तेरी जुदाई की कल्पना मुझे रुला रही है … यह तो परदेश की यात्रा … न जाने कितने महीने.. कितने बरस बीत जाये, कब वापस लौटना हो … क्या पता ?’
सुरसुन्दरी को सूझ नहीं रहा था कि वह क्या जवाब दे । वह खामोश थी । रतिसुन्दरी ने उसके सर पर अपना हाथ फेरते हुए कहा :
‘मुझे तेरे संस्कारों पर पूरा विश्र्वास है , फिर भी तेरे प्रति गाढ़ स्नेह है न ? इसलिये कह रही हूँ कि …’बेटी जान से भी ज्यादा अपने पतिव्रत को समझना । तेरे दिल में शील का जतन करना । शायद कभी कोई संकट भी आ जाये तो निर्भय होकर श्री नमस्कार महामंत्र का ध्यान करना । एकाग्र मन से जाप करना । महामंत्र के प्रभाव से तेरे सभी संकट टल जाएंगे । आपत्तियों के बादल छंट जायेंगे ।’
गृहस्थ – जीवन में पति की प्रसन्नता ही स्त्री का परम धन है । इसलिये अमरकुमार को प्रसन्न करना । सुबह उनके जगने से पहले तू जाग जाना । उन की आवश्यकताओं का पूरा और प्रथम ध्यान रखना ।
पति से , हो सके वहां तक कुछ भी मांगना मत । प्रसन्न हुए पति बिना मांगे हुए , न चाहिए तो भी पत्नी को काफी कुछ देते हैं । फिर भी कभी कुछ मांगना पड़े तो विनय से , नम्रता से मांगना । उनकी इच्छा का अनुसरण करने का प्रयत्न करना ।
ज्यादा तो तुझे क्या कहूं ? तू खुद समझदार है , धर्मप्रय है और हमारे कुल को उजला बनाने वाली है । तेरे पास सच्चा ज्ञान है , श्रद्धा है , और अनेक कलाएं है , इन सबका सुयोग्य समय एवं योग्य जगह पर विनियोग करने की बुद्धि भी तेरे पास है ।

आगे अगली पोस्ट मे…

माँ का दिल – भाग 3
May 29, 2017
माँ का दिल – भाग 5
May 29, 2017

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