Archivers

मन की मुराद – भाग 3

रानी ने राजा से कहा- वह श्रेष्ठिपुत्र है..
‘अमरकुमार !
‘श्रेष्ठि धनावह का पुत्र अमर?
हाँ, सुरसुन्दरी और अमर दोनों एक ही शाला में साथ साथ पड़े हुए है.. एक दूसरे को पहचानते है और मेने तो राजसभा में परीक्षा के दौरान इसी दृष्टिकोण से उसे परखने का प्रयत्न किया था की उसमे मेरी पुत्री के लिये योग्य वर बनने की योग्यता है भी या नहीं और मेरी निगाहे उस पर उत्तरी है। बस सवाल यह है की वो राजकुमार नहीं है।
मै अमर की माँ धनवती को बहुत निकट से जानती हुँ। कई बार मुझे मिलने आती है। सुशिल एव संस्कारी सन्नारि है। उसने अमर को संस्कार श्रेष्ट हो दिये होंगे।
इधर पाठशाला में पंडित सुबुद्धि भी अमर की बुद्धि की.. उसके ज्ञान की प्रशंसा करते हुए थकते नहीं है। राजसभा में भी वो रत्न की भाति मिलमिला उठा था। सेठ धनावह के पास ढेर सारी सम्पति है। नगर में लोकप्रिय, गणमान्य और धर्मनिष्ठ श्रेष्ठि के रूप में प्रसिद्ध है। उनका कुल भी उँचा है। उनकी सातो पीढ़ी खानदानी है। राज्य के साथ उनके सम्बंध की गाढ़ है… इसलिए, सभी ढंग से सोचते हुए… मुझे उसमे कोई कमी दिखायी नहीं देती… प्रबलता, वो राजकुमार नहीं है… राजपरिवार का नहीं है…।
‘इस से क्या ..? यदि बेटी सुखी होती हो तो..
‘पर, रिश्तेदार राजा
लोग हँसी उड़ायेंगे… क्या कोई राजकुमार नहीं मिला… जो एक सेठ के लड़के के साथ राजकुमारी की शादी की…। ऐसा- वैसा बोलेगें…’
‘बोलने दे उन्हें.. बोलने वाले तो बोलेगें ही- अपन को तो सुरसुन्दरी का हित पहले देखना है।
रतिसुन्दरी को अमरकुमार के साथ सुन्दरी का विवाह हो यह बात पसन्द आ गयी।
यदि तुम्हे यह बात पसन्द है तो में संबंध तय कर लु।
मुझे तो पसन्द है… पर आपको… नहीं, बेटी के बारे में माँ का निर्णय ज्यादा अहमियत रखता है, वही मान्य होना चाहिए।
मेरी तरफ से तो आपका निर्णय वही मेरा निर्णय है।
मेरे से ज्यादा आप अच्छी तरह सोच सकते है… मेरे में इतनी बुध्दी है कहा?
यदि बुध्दि न होती तो अपना संसार इतना सुखी नहीं होता देवी!
राजा – रानी के निर्णय कर लिया।
सुरसुन्दरी तो निंद्रा की गोद में सो चुकी थी।
अमरकुमार के लिए यह बात कल्पना में भी शक्य नहीं थी।

आगे अगली पोस्ट मे…

मन की मुराद – भाग 2
May 16, 2017
मन की मुराद – भाग 4
May 16, 2017

Comments are closed.

Archivers