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पहेलियां – भाग 6

अमरकुमार ने पलभर सोचकर कहा : ‘महाराज, उसका प्रत्युत्तर है : कंबलीवेशा !’
‘क’ का अर्थ है पानी । और पानी ही सरोवर का सार है ।
‘बलि’ नामक दानव वंश का विख्यात राजा हो गया ।
‘वेशा’ यानी ‘वेश्या’ वही सदा सौभाग्यवती नारी है।
मारवाड़ के लोग कंबली से पहचाने जाते है इसलिए उन्हें ‘कंबलिवेशा’ कहा जाता है।
राजा ने कहा : बिल्कुल सत्य है तुम्हारा जवाब ! राजसभा में ‘धन्य’ ‘धन्य’ की आवाजे गुंजी ।
राजा ने सुरसुन्दरी को सवाल पूछा:
‘ काव्य का रस कौन सा ? चक्रवाक को दुःख कौन देता है ? असती एवं वेश्या को कौन पुरुष प्रिय होता है ? इन सवालों का जवाब एक ही शब्द में देना ।’
सुरसुन्दरी ने कहा – ‘अत्थमंत !’
अत्थमंत यानी अर्थयुक्त । जो काव्य अर्थ बिना का हो वह काव्य नही है। यानी काव्य का रस उसका अर्थ है।
अत्थमंत का अर्थ ‘ डूबता हुआ’-अस्त होता हुआ’ भी होता है । अस्त होता हुआ सूरज चक्रवाक के लिए
दुःखद होता है। चूँ कि सूर्य अस्त होने पर चक्रवाक-चक्र वाकी का वियोग हो जाता है ।
‘अत्थंमत’ यानी अर्थवान-धनवान! धनवान पुरुष ही असती एवं वेश्य्या को पसंद होता है।
राजसभा मे आनन्द की लहर उठी।
महाराजा ने अमरकुमार को कीमती रत्नों से हुआ हार भेंट किया। सुरसुन्दरी को रत्नजड़ित कंगन दिये।पंडित सुबुद्धि को कीमती वस्त्रालंकारो से समानित किया।
श्रेष्ठ घनावह ने खडे होकर सुरसुरन्दरी के मस्तक पर मणि-मारक से खचित मुकुट रखा। अमरकुमार को रत्नजडित खडग भेंट किया। पंडितजी को सोने के सिक्कों से भरी हुई थेलि अर्पित की।
महाराजा ने गदगद स्वर से निवेदन किया- आज मेरा मन सन्तुष्ट हुआ है। अमरकुमार और राजकुमारी का बुद्धि वैभव अदभुत है।उसकी बुद्धि और उनका ज्ञान उनकी जीवनयात्रा मे उन्हें उपयोगी सिद्ध होगा।धर्मपुरषार्थ में सहायक सिद्ध होगा। परमार्थ और उपकार के कार्यों में उपयोगी होगा। मैं इन दोनों पर प्रसन्न हुआ हुँ। यह सारा यश मिलता हैं पड़ित श्री सुबुद्धि को। उन्होंने पूरी लगन और निष्ठा से छात्र -छात्राओं को अत्यंत सुंदर अध्ययन करवाया हैं। मै उन्हें राजसभा में हमेशा का सभ्यपद- मानभरा स्थान देता हूँ, और ‘राजरत्न’ की पदवी प्रदान करता हूँ। राजसभा का विसर्जन हुआ ।
सभी सभासदओर नगरजन,अमरकुमार एवं सुरसुरन्दरी की प्रशंसा करते करते बिखरने लगे। श्रेष्ठी घनावह अमरकुमार के साथ रथ में बैठकर अपनी हवेली में पहुँचे। महाराजा राजपरिवार के साथ सुरसुरन्दरी को लेकर रथारूढ़ बनकर राजमहल में पहुँचे। राजा के मन में अब सुरसुरन्दरी के भावी जीवन के विचार गतिशील हो रहे थे। निकट भविष्य में ही, सुरसुरन्दरी के हाथ पीले करने का उन्होंने निर्णय लिया।।

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