यानी जल्दी आओ ••• जल्दी आओ ! पर कहा आना है इधर कभी लक्ष ही नहीं जाता।
पुत्री के लिए सुंदर घर और वर मिलता हो और फोन आये ” कम सून “। पत्नी या बेटा अचानक बीमार हो जाये और बाहर बिझीनेस के लिए गये पति को फोन आ जाये की ” कम सून “। विदेश में पढ़ने वाले पुत्र के दुर्घटना का संदेश मिले की ” कम सून तब मनुष्य क्या एक पल का भी विलंब करता है ? नहीं ना ? जो साधन मिले उससे वह अविलम्ब यथा स्थान पहुंच जाता है। संसार के हर कार्य के लिए हम हर जगह जल्दी पहुंचते है।
संत समझाते है, हे मानव ! अनंतकाल की जीवन यात्रा में चौरासी के चक्कर में घूमते हुए बहुत दु;ख उठाते हुए महान पुण्य संचित होता है तब कहीं मनुष्य भव की प्राप्ति होती है। उसमें भी कुछ अधिक पुण्य से जैन धर्म मिलता है, संत समागम मिलता है।
गुरू भगवंत हमें पुकार- पुकार कर कहते है ” कम सून जल्दी अपने निज घर आओ। संत कहते है विवेक बुद्धि वाला यह भव मिला है तो अब इक पल का भी प्रमाद किये बिना ” रत्नंत्रय धर्म की आराधना करने जल्दी आओ। परंतु विषय कषाय, भोगों में लिप्त मानव को संतों की यह कल्याणकारी पुकार सुनाई नहीं देती। वह काम भोगों में मस्त होकर हीरे जैसा मानव भव हार जाता है।
संत कहते है, फिर भी इस धरती पर ऐसे जीव है जिन्होंने संतो की कल्याणकारी पुकार सुन ली उनमें गजसुकुमार, जंबूकुमार, मृगावती रानी, उदयन राजा ऐसे विरले जीव प्रभु की पुकार सुनते हैं उनके वचनों पर श्रद्धा रखते हुए जन्म मरण के फेरे टालकर परमपद को प्राप्त कर लेते हैं।
हमे भी यह जैन शासन प्राप्त हुआ है तो चलो हम भी परमपद को प्राप्त करे।।
प्रभु चांदनी जैसी शीतलता,
मेरे अंतस् में भर देना।
रौशनी की चाह जगी है,
पुरी यह कर देना।
दिल की तमन्ना है प्रभु,
मेरी भूल को माफ कर देना।
मेरे दुर्गुणों का अंधेरा,
कृपा करके तुम हर लेना।।