प्रमत्त आदमी धन से त्राण को प्राप्त नहीं कर सकता ।
धन का भी महत्त्व है, कितनी कितनी चीजें धनाधारित है ।
साधुओं के पास कोई अर्थ नहीं होता, इस दृष्टि से उनसे गरीब भी कोई नहीं होता ।
परन्तु स्वेच्छा से गरीबी को स्वीकार करने वाला संत
और
विवशता से त्याग करनेवाले गरीब होते है ।
विवशता से भोग न करने वाला त्यागी नहीं, त्यागी स्वेच्छा से भोग व परिग्रह का त्याग करने वाला होता है । त्यागी तीन लोक का नाथ बन सकता है ।
साधु माधुकरी वृति से शुद्ध व अहिंसात्मक भिक्षा से जीवन यापन करते है । गृहस्थ को पैसा तो चाहिए पर नैतिकता से कमाया गया पैसा अर्थ है और अन्याय से अर्जित पैसा अर्थाभास है ।
वित्त और वृत्त दो चीजें है । वित्त के लिए वृत्त को मत गंवाओ, बल्कि उसकी रक्षा करो । चेहरा सुन्दर न भी हो तो भी चरित्र सुंदर होना चाहिए । हम उसे सुन्दर बनाये रक्खें ।
बाह्य धन के साथ धर्म का धन भी साथ रहना चाहिए जो इस जनम के बाद भी काम आता है ।