एक प्रश्न जो सब को होता है – चौविस तीर्थंकर की अपेक्षा जो समान होते है तो फिर पार्श्वनाथ परमात्मा की महिमा अन्य २३ तीर्थंकर से ज्यादा क्यों है??
समग्र भारत की अगर हम बात करे तो भगवान पार्श्वनाथ प्रभु की जितनी मूर्ति है और जितने तीर्थ है उतने प्रायः किसी भी परमात्मा के तीर्थ और मूर्ति नही है। अरे जितने ग्रन्थ प्रभु पार्श्वनाथ के रचाये है उतने अन्य कोई भी तीर्थंकर परमात्मा के नही रचाये गए है।
वर्तमान शासन पति प्रभु वीर के भी नही है। चौविस तीर्थंकरो में मात्र और मात्र पार्श्वनाथ परमात्मा के ही जन्म और दिक्षा कल्याणक के दिन सम्पूर्ण भारत वर्ष में सामुदायिक अट्ठम तप की आराधना होती हैं। (विशेषणों 1008 या उससे अधिक) इतने तो क्या इसके 100 भाग के विशेषण (नाम) किसी और परमात्मा के नही है। आदेय नाम कर्म विगेरे अनेक जवाब आते है परन्तु एक बहुत अच्छा जवाब गुरु भगवंत ने दिया जो एक नयी राह बताता था। तो आज के जीवन में लोगो को ख्याति प्राप्त करने का मार्ग भी बताता है।
पार्श्वनाथ परमात्मा की सहनशीलता खुब खुब अद्भुत थी।इसका यह अर्थ मत करना की भगवान महावीर स्वामी और अन्य परमात्मा ने कम सहन किया है। परन्तु प्रभु वीर ने जो भी सहन किया है वो 27th भव में सहन किया है। लेकिन पार्श्वनाथ परमात्मा के जीव ने सम्यक्त्व पाया तब से यानि मरुमति के भव से यानि प्रत्येक भव में (देव भव को छोड़कर) सहन किया है। अगर हम इस अपेक्षा से विचार करे तो 24 परमात्मा में सब से ज्यादा उपसर्गों, कष्टो को अगर सहन किया है तो वह पार्श्वनाथ परमात्मा ने सहन किया है। परमात्मा की यह सहनशीलता ही समग्र विश्व को प्रभु का पुजारी बनाती है।
अगर आपको भी इस दुनिया में महान बनना है तो सबसे पहले सहनशीलता का गुण अपनाओ।
“खरी खरी परीक्षा”
“पूजा करने का अच्छा समय है और तभी अगर आपके घर पर मेहमान आये तो आप क्या करोगे??
जो अगर मेहमान के कारण आप पूजा छोड़ देते है तो इसका मतलब यह होगा की आपके ह्रदय में भगवान से ज्यादा मेहमान मुख्य है।