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हिम्मत है मर्दा तो मदद है खुदा

एक गाँव था। उस गाँव में आई शाला में कातिल ठंडी से बचने के लिए चूला जलाने में आता था ताकि उसे गरम रखा जा सके। और विद्यार्थी आराम से पढ़ सके।

चूले को जलाने की जवाबदारी ग्लेन नाम के विद्यार्थी को सौपी गई थी। एक दिन ग्लेन बड़े भाई फ्लोइड के साथ चूला जलाने आया। किसी ने केरोसिन की जगह गेलोसिन का केन रख दिया। जिसके कारण आग लग गई और फ्लोइड उस आग में जलकर मृत्यु को पा गया। 3 साल का था और उस समय ग्लेन 8 वर्ष का था जो बच गया।

ग्लेन बचा तो था परन्तु उसके पैर भयंकर रूप से जलकर समाप्त हो गए थे। डॉक्टरों ने ऐसा कहा की यह लड़का जीवन में कभी भी अपने पैरो पर खड़ा नही हो पायेगा। ग्लेन के कमर के निचे का भाग निर्जीव हो गया था।

ग्लेन डॉक्टरों की बात मानने को तैयार नही था । उसे भगवान पर खुब ज्यादा श्रद्धा थी। दूसरो की मदद के बिना कुछ नही करने वाला ग्लेन ने माता पिता से कहा की एक दिन मै अपने पैरो पर चलूँगा और उसमे भगवान मेंरी मदद करेगे।

ग्लेन के माता पिता ने उसका साथ दिया। माता रोज उसके पैर पर मालिश करती रही। और यह घन्टो तक पैरो की कसरत करने लगा। कोई परिणाम न मिलने पर भी वह निराश हुये बिना उसने प्रयासों को जारी रखा। उसने घर के आँगन में पैर गसिट कर चलने की कोशिश की। धीरे धीरे मेहनत और हिम्मत के कारण वह लंगराते लंगराते चलने लगा। और उनकी मेहनत रंग लाने लगी।

2 वर्ष की सतत मेहनत से वह अपने पैरो पर खुद चलने लगा। अब तो उसने दौड़ने की भी शुरुवात की। दौड़ की स्पर्धाओं में भाग लेने लगा।

25 वर्ष की उम्र में तो 1934 के साल में ग्लेन कनिगहामने विश्व ओलंपिक में मात्र 4मिनट और 6 सेकंड में एक माइल दौड़कर विश्व विकम बनाया। 1936 में उसने अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर नया विश्व विक्रम बनाया। यह विश्वविक्रम 1954 तक कोई तोड़ नही सका।

दृढ़ संकल्प हो तो कुछ भी अशक्य नही है। खुद के ऊपर श्रद्धा और सकारात्मक विचारणा से इंसान धारे वह कर सकता है।

“हम तो राख में से भी बैठने वाले है
जलाओगे तो भी जीने वाले है।”

साधु की याद…
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पारस प्यारा
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